Chhath Mahaparv 2024 - बिहार के औरंगाबाद में स्थित भगवान भाष्कर की नगरी देव में छठ महापर्व करने का एक अलग ही महत्व है। क्योंकि देव में स्थित भगवान भाष्कर का मन्दिर तथा कष्ट निवारण तालाब जो त्रेतायुग में भगवान राम के वंशज के आदेश अनुसार भगवान विश्वकर्मा के द्वारा निर्माण कराया गया था। भगवान भाष्कर के इस मंदिर को लेकर मंदिर के मुख्य पुजारी सुभाष मिश्रा ने बताया कि देव नगरी में स्थापित भगवान भाष्कर की मंदिर तथा कष्ट निवारण तालाब का निर्माण त्रेतायुग में कराया गया था । यह मंदिर पूरे विश्व में अद्वितीय है । उन्होंने बताया कि देव सूर्य मंदिर ही एक ऐसा सूर्य मंदिर है जिसका मुख्य दरवाजा पश्चिमामुख है।
मंदिर के पुजारी सुभाष मिश्रा ने मंदिर के पीछे का इतिहास बताते हुए कहा कि मुगलो के शासन काल में भारत में बहुत सारे मन्दिरो को तोड़ दिया गया था। उसके बाद उस पर मस्जिद बनवा दिया था। उसी समय औरंगजेब ने देव मन्दिर को भी तोड़ने का आदेश दिया था । जिसके बाद मंदिर के कुछ भाग को तोड़ भी दिया गया था। लेकिन मंदिर तोड़ने की खबर सुनते ही आसपास के गांव से हजारों की संख्या में लोग उपस्थित होकर मन्दिर नही तोड़ने का आग्रह किया। जिसके उपरांत मुगल शासक ने फरमान जारी किया था कि हम इस शर्त पर मंदिर को नही तोड़ेगे। अगर सूर्योदय से पहले इसका दरवाजा पश्चिम मुख का हो जायेगा। जिसके बाद उसी रात्रि में इस मंदिर का दरवाजा पश्चिममुख हो गया था।
मंदिर के पुजारी ने यह भी बताया कि यहां भगवान भाष्कर के 11 स्वरूप की मूर्ति विराजमान है। जिन्हें ब्रम्हा विष्णु महेश के त्रिकाल रूप मन जाता है। जो आदित्यपुराण और बावनपुराण में वर्णित है। उन्होंने यह भी बताया कि देव सूर्य मंदिर का वर्णन अन्य कई पुराणों में भी वर्णित है। सुभाष मिश्रा ने बताया कि त्रेता काल मे भगवान राम के वंशज राजा इला के पुत्र अइल के द्वारा इस मंदिर तथा कुष्ट निवारण तालाब का निर्माण कराया गया था । सबसे पहले यहां भगवान राम और माता सीता भी छ्ठी मइया का उपासना यहाँ से ही की थी। उन्होंने यह भी कहा है कि जो भी भक्त सच्चे दिल से मन्नत मांगते है, उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। इस दरवार से आज तक कोई भी खाली नही लौटा है। इसके उपरांत कहा कि अगर कुष्ट रोग से पीड़ित मरीज इस कुष्ट निवारण तालाब में स्नान कर भगवान भष्कर का अगर दर्शन करता है ,तो उसके कुष्ट रोग जैसे असाध्य बीमारी भी ठीक हो जाएगी है। हालांकि कुछ दिन पूर्व भगवान भाष्कर की धरती पर वेदों के ज्ञाता रामभद्राचार्य का भी आगमन हुआ था और उन्होंने भी अपने प्रवचन में कहा था कि भगवान राम के द्वारा भी इस मंदिर का जीर्णोद्वार कई बार कराया गया था, जो वेदों में वर्णित है।
औरंगाबाद से दीनानाथ मौआर की रिपोर्ट