sharda sinha death: बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा के निधन के बाद उनके ससुराल, बेगूसराय के सिहमा गांव में गहरा शोक व्याप्त है। उनके निधन के कारण इस बार छठ महापर्व नहीं मनाया जाएगा। गांव में लगभग 400 परिवार शारदा सिन्हा के गोतिया हैं, और हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार जब तक उनका अंतिम संस्कार नहीं होगा, उनके गोतिया परिवारों के घरों में चूल्हे नहीं जलाए जाएंगे। कई अन्य परिवारों ने भी इस दुखद समाचार के कारण चूल्हा चौका बंद रखा है।
शारदा सिन्हा की अंतिम यात्रा 7 नवंबर को पटना के राजेंद्र नगर में संपन्न होगी, जिसमें सिहमा गांव से उनके परिवार और रिश्तेदार शामिल होंगे। छठ महापर्व के पहले दिन उनके निधन से गांव में मातम का माहौल है, क्योंकि शारदा सिन्हा छठ गीतों के माध्यम से ही देश-विदेश में प्रसिद्ध हुई थीं। स्थानीय लोगों के अनुसार, शारदा सिन्हा अपने सहज स्वभाव के कारण गांव में सभी से आत्मीयता से मिलती थीं और गांव की संस्कृति से जुड़ी रहती थीं।
इस साल गांव में मातम छाया हुआ है
शारदा सिन्हा के निधन से उनके ससुराल, बेगूसराय के सिहमा गांव में गहरा शोक का माहौल है। छठ गीतों के लिए विख्यात शारदा सिन्हा ने अपनी कला से देश-विदेश में एक अलग पहचान बनाई थी। हालांकि, उन्होंने स्वयं छठ पूजा नहीं करती थीं, लेकिन वह हर साल छठ महापर्व के समय अपने ससुराल आती थीं। परिवार और गांव के लोगों से आत्मीयता से मिलती थीं। उनके निधन की खबर से इस साल गांव में मातम छाया हुआ है।
गांव के लोगों ने बताई अनोखी बात
गांव के लोग बताते हैं कि शादी के बाद शारदा सिन्हा ने पहली बार गांव में गीत प्रस्तुत किया था, जिसे लेकर ससुराल में थोड़ा विरोध हुआ था। हालांकि, बाद में सब ठीक हो गया, और उनकी गायकी को परिवार और समाज में मान्यता मिल गई। उनके सहज और मिलनसार स्वभाव के कारण ग्रामीण उनसे गहरी जुड़ाव महसूस करते थे। शारदा सिन्हा के निधन के कारण इस साल गांव में छठ महापर्व का उत्साह नहीं है और लोग उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।