Supreme Court: अदालत बनी हमसफ़र! सुप्रीम कोर्ट में बलात्कार के दोषी प्रेमी जोड़े को विवाह बंधन में बंधने का मिला मौका
Supreme Court: आमतौर पर देश के गंभीर कानूनी मसलों और जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट में एक अप्रत्याशित दृश्य देखने को मिला।

Supreme Court: आमतौर पर देश के गंभीर कानूनी मसलों और जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक अप्रत्याशित दृश्य देखने को मिला। शीर्ष अदालत ने एक बलात्कार के दोषी और शिकायतकर्ता युवती को विवाह के बंधन में बंधने का एक अनूठा अवसर प्रदान किया।
दरअसल, यह मामला एक ऐसे जोड़े से जुड़ा था जो फेसबुक के माध्यम से करीब 10 साल पहले संपर्क में आए थे। युवती का आरोप था कि लड़के ने उससे शादी का वादा किया था और बाद में मुकर गया, जिसके चलते उसने लड़के पर बलात्कार का आरोप लगाया। निचली अदालत ने लड़के को इस मामले में दोषी ठहराते हुए 10 साल की सजा सुनाई थी।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एससी शर्मा की बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए एक अलग दृष्टिकोण अपनाया। अदालत ने लड़के और लड़की दोनों पक्षों को उनके माता-पिता और वकीलों के साथ अपने चेंबर में पेश होने का निर्देश दिया। लंच से पहले सभी पक्ष चेंबर में पहुंचे, जहां जजों ने उनकी बात ध्यान से सुनी।अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा कि उसने दोनों पक्षों को बातचीत का समय इसलिए दिया ताकि वे अदालत को बता सकें कि क्या लड़का और लड़की सगाई और शादी करना चाहते हैं। लंच के बाद जब दोनों पक्षों को फिर से कोर्ट हॉल में बुलाया गया, तो उन्होंने अदालत के समक्ष अपनी शादी की इच्छा व्यक्त की।
इस पर अदालत ने उम्मीद जताई कि दोनों का विवाह जल्द ही संपन्न होगा और उनके माता-पिता इसकी तैयारी करेंगे। अदालत ने यह भी आदेश दिया कि लड़के को वापस जेल भेजा जाएगा, लेकिन उसे संबंधित सत्र न्यायालय के समक्ष पेश किया जाएगा, जो उसे उचित शर्तों पर जमानत पर रिहा कर देगी ताकि वह शादी कर सके।इस मामले में लड़के ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच में अपनी सजा को रद्द करने की याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। इसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
सुनवाई के दौरान एक भावनात्मक पल भी आया जब बेंच ने इस जोड़े को अदालत में ही एक-दूसरे को फूल देने के लिए राजी किया। मध्य प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए एडवोकेट मृणाल गोपाल एकर ने बताया कि फूलों का इंतजाम भी स्वयं अदालत ने ही किया था। यह घटना न्यायपालिका के मानवीय चेहरे को दर्शाती है, जहां कानूनी पेचीदगियों के साथ-साथ मानवीय संबंधों और सामाजिक पहलुओं पर भी ध्यान दिया गया।