Supreme Court CJI: जस्टिस बीआर गवई बने भारत के 52वें CJI, बुलडोजर जस्टिस को लताड़ने वाले ‘कानून के शेर’ की नई पारी

Supreme Court CJI: राष्ट्रपति भवन में एक खास समारोह हुआ, जहां जस्टिस बीआर गवई ने देश के 52वें चीफ जस्टिस के रूप में शपथ ली।

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जस्टिस बीआर गवई बने भारत के 52वें CJI- फोटो : social media

Supreme Court CJI: राष्ट्रपति भवन में एक खास समारोह हुआ, जहां जस्टिस बीआर गवई ने देश के 52वें चीफ जस्टिस  के रूप में शपथ ली। इस शपथ के साथ ही उन्होंने इतिहास रच दिया—वह भारत के पहले बौद्ध और आजादी के बाद दलित समुदाय से दूसरे CJI बने। छह महीने के अपने कार्यकाल में वह देश की न्याय व्यवस्था को नई दिशा देंगे। लेकिन यह सिर्फ एक नियुक्ति नहीं है, यह एक ऐसे जज की कहानी है, जिसने बुलडोजर जस्टिस को लताड़ा, अनुच्छेद 370 और नोटबंदी जैसे बड़े फैसलों को बरकरार रखा, और कानून के शासन को मजबूती से थामा। तो आइए, इस 'कानून के शेर' की कहानी को जरा व्यंग्यात्मक अंदाज में देखते हैं, जो कार्यपालिका को 'जज, जूरी और जल्लाद' बनने से रोकने का दम रखता है!

जस्टिस बीआर गवई: कानून का 'बुलडोजर-ब्रेकर'!

जस्टिस बीआर गवई का नाम अब सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की फाइलों में नहीं, बल्कि इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया है। वह पहले बौद्ध CJI हैं और जस्टिस केजी बालाकृष्णन के बाद दलित समुदाय से दूसरे चीफ जस्टिस। उनका यह पद संभालना सामाजिक समावेश और संवैधानिक मूल्यों की जीत है, खासकर उस देश में जहां जाति और धर्म की राजनीति कभी-कभी कानून पर भी भारी पड़ने की कोशिश करती है। लेकिन जस्टिस गवई ने अपने फैसलों से साबित किया है कि उनके लिए संविधान ही भगवान है, और कानून का शासन उनकी पूजा।

उनका कार्यकाल भले ही छह महीने का हो, लेकिन उनके फैसलों का असर दशकों तक गूंजेगा। जस्टिस गवई ने बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ ऐतिहासिक फैसला सुनाकर कार्यपालिका को आईना दिखाया, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखकर राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया, नोटबंदी को सही ठहराकर आर्थिक नीतियों पर मुहर लगाई, और अनुसूचित जाति कोटे में उप-वर्गीकरण को मंजूरी देकर सामाजिक न्याय को नया आयाम दिया। ये फैसले सिर्फ कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने वाले मील के पत्थर हैं।

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बुलडोजर जस्टिस को 'लताड़': आश्रय का अधिकार और कानून का राज!

जस्टिस गवई का सबसे चर्चित फैसला रहा बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ उनकी सख्त टिप्पणी। कुछ राज्य सरकारों द्वारा 'अपराधियों' या 'अवैध निर्माण' के नाम पर बुलडोजर चलाने की प्रवृत्ति पर उन्होंने कड़ा प्रहार किया। अपने फैसले में उन्होंने कहा कि मनमाने ढंग से तोड़फोड़ न केवल प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि यह कानून के शासन को ठेंगा दिखाने जैसा है। "कार्यपालिका जज, जूरी और जल्लाद की भूमिका नहीं निभा सकती," उनकी यह टिप्पणी न सिर्फ बुलडोजर चलाने वालों के लिए लताड़ थी, बल्कि उन तमाम नेताओं के लिए चेतावनी थी जो कानून को अपने 'जूतों' तले रौंदने की कोशिश करते हैं।

जस्टिस गवई ने आश्रय के अधिकार पर जोर देते हुए कहा कि किसी का घर तोड़ना सिर्फ ईंट-पत्थर गिराना नहीं, बल्कि एक परिवार की जिंदगी उजाड़ना है। यह फैसला उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण बना, जिनके घर सियासी बदले की भेंट चढ़ रहे थे। लेकिन व्यंग्य यह है कि जिन राज्यों में बुलडोजर 'जस्टिस' की सैर कर रहे थे, वहां के नेता अभी भी इसे अपनी 'शान' मानते हैं। जस्टिस गवई का यह फैसला उन्हें शायद यह याद दिलाएगा कि संविधान की किताब उनके बुलडोजर से कहीं ज्यादा मजबूत है।

370 और नोटबंदी पर 'मुहर': राष्ट्रीय एकता और आर्थिक नीति!

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखकर जस्टिस गवई ने राष्ट्रीय एकता को और मजबूत किया। उन्होंने साबित किया कि देश की अखंडता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। इसी तरह, नोटबंदी को सही ठहराकर उन्होंने सरकार की आर्थिक नीतियों पर मुहर लगाई। हालांकि, कुछ लोग इसे 'गलत' फैसला मानते हैं, लेकिन जस्टिस गवई ने कानून के हिसाब से फैसला दिया, न कि भावनाओं के आधार पर।

अनुसूचित जाति कोटे में उप-वर्गीकरण को मंजूरी देकर जस्टिस गवई ने दलित समुदाय के लिए एक नई उम्मीद जगाई है। यह फैसला उन जातियों को ज्यादा फायदा देगा जो अब तक कोटे का पूरा लाभ नहीं उठा पाईं। लेकिन कुछ लोग इसे 'विभाजनकारी' मानते हैं, जबकि जस्टिस गवई का मानना है कि इससे सामाजिक न्याय को और मजबूती मिलेगी।

कानून का 'शेर': न्याय की दहाड़!

जस्टिस बीआर गवई का CJI बनना सिर्फ एक नियुक्ति नहीं, बल्कि न्याय की जीत है। उन्होंने साबित किया है कि कानून के सामने सब बराबर हैं, चाहे वह कोई नेता हो या आम आदमी। उनका कार्यकाल भले ही कम हो, लेकिन उनकी दहाड़ लंबे समय तक गूंजती रहेगी। अब देखना यह है कि यह 'कानून का शेर' अपनी नई पारी में और कितने 'शिकार' करता है!