Bihar News:पाँव की थापों से धरती को स्पंदित करती नृत्ययात्रा, शाम्भवी शर्मा की 'नृत्यमृत' के माध्यम से कुचिपुड़ी विरासत का पुनर्जागरण
Bihar News: चकाचौंध भरी ज़िंदगी में 17 वर्षीया शाम्भवी शर्मा ने अपनी कला से जो शांति और ऊर्जा फैलाई है, वह सिर्फ एक मंचीय प्रस्तुति नहीं, एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण है।

Bihar News: दिल्ली की हलचल भरी धरती पर, जब 17 वर्षीय शाम्भवी शर्मा अपनी पाँव की थापों से धरती को स्पंदित करती हैं, तो उसमें न केवल कुचिपुड़ी की शास्त्रीय गूंज होती है, बल्कि उसमें बिहार की सांस्कृतिक स्मृति भी प्रतिध्वनित होती है। संस्कृत स्कूल की छात्रा और पद्मश्री गुरु राजा राधा रेड्डी की शिष्या, शाम्भवी की नृत्ययात्रा मात्र प्रस्तुति नहीं, एक चिकित्सकीय और आत्मिक अनुभव है जिसका नाम है नृत्यमृत।
‘नृत्यमृत’ केवल मंच की सीमा में बंधा हुआ उपक्रम नहीं, बल्कि वह प्रयास है जो संवेदनशील मनों तक नृत्य की औषधीय शक्ति को पहुँचाता है। बच्चों, रोगियों और सामाजिक रूप से हाशिए पर रह रहे समुदायों के लिए यह नृत्य शांति, आशा और आत्म-सम्मान का साधन बन चुका है। G20 यूनिवर्सिटी कनेक्ट जैसे वैश्विक मंचों पर प्रस्तुति से लेकर, दिल्ली की बस्तियों में बच्चों के बीच ‘समभंग’ और ‘त्रिभंग’ की मुद्रा सिखाने तक, शाम्भवी की साधना में एक आध्यात्मिक लगाव और सामाजिक दायित्व दोनों समाहित हैं।
दिल्ली की एक बस्ती में हुए सत्र में जब 10 वर्षीय गरिमा ने ‘शांति’ मुद्रा अपनाई और जब 12 वर्षीय खुशी ने ‘आशा’ मुद्रा के माध्यम से जीवन के सपनों को आकार दिया, तब वह केवल नृत्य की शिक्षा नहीं थी वह आत्मा की पहचान और मन की चिकित्सा थी। यह बिहार के लोकजीवन की सरलता और संस्कारों की एक झलक थी, जो नृत्य के माध्यम से बच्चों में प्रवाहित हो रही थी।
इस सत्र की रील को सैकड़ों बार देखा गया लेकिन उससे कहीं अधिक उस स्पंदन को महसूस किया गया, जो हर चित्र, हर चाल और हर मुस्कान में समाहित था। शाम्भवी का ‘नृत्यमृत’ एक सजीव प्रमाण है कि नृत्य केवल प्रदर्शन नहीं, जीवन के अंधकार में दीपक रखने का कार्य भी कर सकता है। बिहार की भूमि से प्रेरणा लेकर, दिल्ली की धूल में वह दीपक जल रहा है — संवेदना, सौंदर्य और संबल का प्रतीक बनकर।