Indian Railways: 75 साल बाद भी नहीं टूटी गुलामी की जंजीर, रेलवे आज भी भरता है अंग्रेजों को करोड़ों की रॉयल्टी, हैरान कर देगा ये सच
Indian Railways:क्या आप यकीन कर सकते हैं कि आज़ादी के 77 साल बाद भी भारत में एक ऐसा रेलवे ट्रैक है, जिस पर हमारी अपनी सरकार का नहीं, बल्कि ब्रिटेन की एक निजी कंपनी का राज चलता है?

Indian Railways:क्या आप यकीन कर सकते हैं कि आज़ादी के 77 साल बाद भी भारत में एक ऐसा रेलवे ट्रैक है, जिस पर हमारी अपनी सरकार का नहीं, बल्कि ब्रिटेन की एक निजी कंपनी का राज चलता है? सुनकर रोंगटे खड़े हो गए न! लेकिन यह बिल्कुल सच है! जिस देश के लिए हमने अपनी जान की बाजी लगा दी, वहाँ आज भी औपनिवेशिक विरासत का एक टुकड़ा धड़क रहा है, जो हमें हर साल लाखों का चूना लगा रहा है!
शकुंतला रेलवे: एक कड़वी हकीकत
महाराष्ट्र के अमरावती से मुर्तजापुर तक 190 किलोमीटर में फैला यह 'शकुंतला रेलवे ट्रैक' सिर्फ एक रेल लाइन नहीं, बल्कि हमारे गौरवशाली इतिहास पर एक धब्बा है! अंग्रेजों ने इसे 1903 में बिछाना शुरू किया और 1916 तक पूरा कर लिया, सिर्फ इसलिए ताकि अमरावती की कपास को मुंबई बंदरगाह तक पहुँचाकर अपनी जेबें भर सकें। ब्रिटेन की क्रिक निक्सन एंड कंपनी ने इसके लिए बाकायदा सेंट्रल प्रोविंस रेलवे कंपनी (CPRC) तक बना डाली। सोचिए, हमारा कपास, हमारी ज़मीन, और मुनाफा गोरे साहबों का!
नाम 'शकुंतला', पर कहानी दर्दनाक!
इस ट्रैक पर कभी 'शकुंतला पैसेंजर' नाम की एक ही ट्रेन चलती थी, जिसमें सिर्फ 5 डिब्बे होते थे और जिसे भाप का इंजन खींचता था। शायद इसीलिए इसका नाम 'शकुंतला' पड़ गया। 1994 के बाद इसमें डीजल इंजन लगा और डिब्बे 7 कर दिए गए, लेकिन इसकी दुर्दशा कभी नहीं बदली। आज भी इस ट्रैक पर आपको सिग्नल से लेकर हर चीज़ अंग्रेजों के जमाने की ही मिलेगी। क्या यह हमारे आधुनिक भारत के लिए शर्म की बात नहीं है? यह ट्रेन अचलपुर और यवतमाल सहित 17 स्टेशनों पर रुकते हुए 6-7 घंटे का लंबा सफर तय करती थी, लेकिन अब यह भी बंद हो चुकी है।
आज़ादी के बाद भी 'गुलामी' की रॉयल्टी!
सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि आज़ादी मिलने के बाद भी इस ट्रैक का स्वामित्व ब्रिटेन की उसी निजी कंपनी के पास है! 1947 में जब देश आज़ाद हुआ, तो भारतीय रेलवे ने उस कंपनी के साथ एक ऐसा समझौता किया, जिसके तहत आज भी हम हर साल करोड़ों की रॉयल्टी उस विदेशी कंपनी को चुका रहे हैं! रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय रेलवे हर साल 1 करोड़ 20 लाख रुपये उस कंपनी को सिर्फ इसलिए देता है ताकि वे 'अपने' ट्रैक को संचालित करें! यह पैसा हमारे देश के विकास पर क्यों नहीं खर्च हो रहा?
जर्जर ट्रैक, बंद ट्रेन और अनदेखी
इस ट्रैक की हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि अब तो इस पर ट्रेन चलना भी बंद हो गया है। सरकार रॉयल्टी तो दे रही है, लेकिन पिछले 60 सालों से कंपनी ने इसकी मरम्मत का काम तक नहीं कराया! इसी वजह से शकुंतला पैसेंजर इस ट्रैक पर 20 किमी प्रति घंटे की कछुआ चाल से चलती थी, और अंततः 2020 में इसका संचालन बंद हो गया। इलाके के लोग आज भी इस ट्रेन को फिर से शुरू करने की मांग कर रहे हैं।यह सिर्फ एक ट्रैक नहीं, बल्कि हमारे स्वाभिमान पर एक प्रश्नचिह्न है! क्या हम अपने ही देश में एक विदेशी कंपनी को यह लूट जारी रखने देंगे? कब तक भारतीय रेलवे इस औपनिवेशिक विरासत का बोझ ढोता रहेगा?