Short Dresses of Girls: "कम कपड़े वाली लड़की अच्छी नहीं लगती" – संस्कृति के स्वयंभू भाजपा मंत्री फिर बोले, मचा बवाल
Short Dresses of Girls: वरिष्ठ मंत्री ने सोचा कि अब समय आ गया है वस्त्रावरण पर बोलने का और उन्होंने बोल भी दिया – "कम कपड़े वाली लड़की अच्छी नहीं लगती।"

Short Dresses of Girls: विश्व पर्यावरण दिवस जैसे गंभीर और वैश्विक मुद्दे पर आयोजित कार्यक्रम में जब लोग पौधों की महिमा गा रहे थे, पर्यावरण संरक्षण की प्रतिज्ञा ले रहे थे, तब मध्य प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने सोचा कि अब समय आ गया है वातावरण नहीं, वस्त्रावरण पर बोलने का। और उन्होंने बोल भी दिया – "कम कपड़े वाली लड़की अच्छी नहीं लगती।"
अब यह बात सुनकर पर्यावरण भी शर्म से लाल हो गया होगा कि भाई, यह मुद्दा मुझसे कैसे भटककर फैशन पॉलिसिंग तक आ पहुंचा?विजयवर्गीय जी ने अपने पुराने रिकॉर्ड को फिर से ताज़ा कर दिया – "महिला देवी का स्वरूप होती है", लेकिन शर्त यह है कि देवीत्व की पहचान कपड़े की मीटर टेप से की जाएगी। ज़्यादा कपड़े, ज़्यादा संस्कार; कम कपड़े, कम शिष्टाचार – यही उनका नया "फैशन-संस्कार समीकरण" है।
उन्होंने आगे बताया कि जब लड़कियां उनके साथ सेल्फी लेना चाहती हैं तो वे पहले 'ड्रेस कोड' जांचते हैं – फिर जाकर ‘क्लिक’ की अनुमति मिलती है। शायद अगली बार लड़कियों को सेल्फी लेने से पहले पर्यटन मंत्रालय की तरह एक 'संस्कृति विभाग' की स्वीकृति भी लेनी पड़े।वैसे, मंत्रीजी का बयान कोई नया नहीं है। वे पहले भी 'फैशन से फूटा फेमिनिज्म' के खिलाफ बिगुल बजा चुके हैं। रामायण से शूर्पणखा निकालकर आज की युवतियों पर लागू कर देना तो मानो उनके लिए बाएं हाथ का खेल है। एक बार फिर उन्होंने यह जताने की कोशिश की है कि भारतीय संस्कृति को सबसे बड़ा खतरा पर्यावरण प्रदूषण से नहीं, महिलाओं के फैशन सेंस से है।
विजयवर्गीय जी नाइट कल्चर के भी कट्टर विरोधी रहे हैं। इंदौर में बार और पब पर उन्होंने जितनी सख़्ती दिखाई, उतनी तो शायद नगर निगम ने कचरा प्रबंधन पर भी नहीं दिखाई होगी।अब सवाल यह है कि क्या संस्कृति की रक्षा कपड़ों की लंबाई से होगी? क्या महिला की गरिमा का पैमाना उसका पहनावा होगा? या फिर यह सब सिर्फ एक राजनीतिक भाषण नहीं, एक "ड्रेस-कोड-धर्मग्रंथ" तैयार करने की शुरुआत है?
बहरहाल मंत्री जी का संदेश साफ़ है – कपड़ों में कटौती करो, तो संस्कृति में छेड़छाड़ समझी जाएगी। और अगर आप सार्वजनिक जीवन में सेल्फी लेना चाहती हैं, तो पहले "साहित्य-सम्मत सलवार" पहनना अनिवार्य होगा। तो अगली बार जब कोई कार्यक्रम हो, तो पौधारोपण से पहले ‘संस्कृति संरक्षण यज्ञ’ में भाग लें, और कपड़े पूरे पहनकर ही विजयवर्गीय जी के पास जाएं – वरना न फोटो मिलेगा, न संस्कार।