Aurangzeb : खुल्दाबाद में क्यों दफनाया गया औरंगजेब? खुद बताया था मौत के बाद का ठिकाना!
मुगल बादशाह औरंगजेब, जिसने अपने जीवनकाल में विशाल साम्राज्य पर शासन किया, उसकी मृत्यु के बाद उसकी अंतिम इच्छा ने एक ऐतिहासिक रहस्य को जन्म दिया। दिल्ली और आगरा के बजाय, औरंगजेब को महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में दफनाया गया।

मुगल बादशाह औरंगजेब की कब्र को लेकर इन दिनों महाराष्ट्र में बवाल मचा हुआ है। लेकिन औरंगजेब का नाम इतिहास में एक ऐसे शासक के तौर पर दर्ज है, जिसने जिसने लंबे समय तक भारत पर राज किया। उसकी मौत के बाद हमेशा एक सवाल उठता रहा- दिल्ली और आगरा की गद्दी पर बैठने वाले बादशाह की कब्र औरंगाबाद (महाराष्ट्र) के खुल्दाबाद में क्यों बनाई गई? इसका जवाब औरंगजेब ने अपनी मौत से पहले खुद ही दे दिया था।
मौत से पहले वसीयत
साल 1707 में जब औरंगजेब दक्षिण भारत में मराठों के खिलाफ आखिरी युद्ध लड़ रहा था, तो वह बीमार पड़ गया। कृष्णा नदी के पास वागिंजेरा किले को जीतने के बाद उसने अहमदनगर की ओर कूच किया। लेकिन रास्ते में उसकी तबीयत और बिगड़ गई। 14 जनवरी 1707 को उसे तेज बुखार हो गया। इस दौरान औरंगजेब को एहसास हो गया कि अब उसकी जिंदगी का सफर खत्म होने वाला है। औरंगजेब ने अपनी वसीयत में साफ लिखा था कि "मेरी कब्र एक साधारण कब्र होनी चाहिए, इस पर कोई बड़ा स्मारक नहीं बनाया जाना चाहिए और इसे बनाने में ज्यादा पैसा खर्च नहीं किया जाना चाहिए।" उसने यह भी कहा था कि "कब्र का खर्च मेरी अपनी कमाई से उठाया जाए, जो मैंने कुरान की नकल करके और टोपियां सिलकर कमाया है।"
खुल्दाबाद को क्यों चुना गया?
औरंगजेब ने खुल्दाबाद को अपने अंतिम गंतव्य के रूप में इसलिए चुना क्योंकि इस जगह को सूफी संतों का शहर माना जाता था। औरंगाबाद से करीब 25 किलोमीटर दूर खुल्दाबाद सूफी संत शेख जैनुद्दीन और मलिक अंबर की दरगाह के पास स्थित है। औरंगजेब की धार्मिक प्रवृत्ति और सूफी संतों के प्रति सम्मान की भावना ने उसे इस जगह की ओर आकर्षित किया। औरंगजेब के आदेश के अनुसार, उसकी कब्र कच्ची मिट्टी से तैयार की गई थी। पहले यह एक साधारण कब्र थी, लेकिन बाद में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन ने इस कब्र को संगमरमर से ढकवा दिया। यह मकबरा आज भी खुल्दाबाद में स्थित है और उनकी सादगी और विनम्रता को दर्शाता है। इसके विपरीत, अन्य मुगल शासकों की कब्रें आलीशान कब्रों के रूप में देखी जाती हैं, लेकिन औरंगजेब की कब्र एक साधारण व्यक्ति की कब्र की तरह है।
औरंगजेब की अंतिम यात्रा
जब औरंगजेब ने अंतिम सांस ली, तो उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें खुल्दाबाद ले जाया गया। वहां उन्हें सूफी संत शेख जैनुद्दीन की दरगाह के पास दफनाया गया। इस जगह को "रौजा-ए-औरंगजेब" कहा जाता है। उनकी कब्र पर अरबी में लिखा है - "यहां वह दफन है, जिसने 50 साल तक दुनिया पर राज किया, लेकिन मौत को नहीं रोक सका।"
औरंगजेब की अंतिम इच्छा पूरी हुई
अपनी मृत्यु से पहले औरंगजेब ने यह भी निर्देश दिया था कि "मेरी मृत्यु के बाद कोई शोक नहीं मनाया जाना चाहिए और किसी भी तरह का कोई समारोह आयोजित नहीं किया जाना चाहिए।" उनकी अंतिम इच्छा पूरी ईमानदारी से पूरी की गई। औरंगजेब के बेटे आजम शाह की कब्र भी उनकी कब्र के पास ही स्थित है। इसके अलावा शेख जैनुद्दीन की दरगाह भी उसी परिसर में है, जहां मुगल बादशाह औरंगजेब का अंतिम विश्राम स्थल बनाया गया था।
अभी भी विवाद का केंद्र
वैसे तो औरंगजेब की कब्र को सादगी और विनम्रता की मिसाल माना जाता है, लेकिन समय-समय पर यह कब्र विवाद का केंद्र भी रही है। कभी राजनीति के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर इसे निशाना बनाया गया, लेकिन इतिहास गवाह है कि औरंगजेब ने अपनी मौत से पहले यह तय कर लिया था कि उसकी कब्र न सिर्फ सादी होगी, बल्कि उसे ऐसी जगह दफनाया जाएगा, जहां उसके दिल को सुकून मिले।