बीमारी से ज्यादा 'क्लेम' ने रुलाया: इंश्योरेंस कंपनियों की मनमानी पर फूटा ग्राहकों का गुस्सा, शिकायतों का लगा अंबार

इलाज महंगा, भरोसा सस्ता: IRDAI की सख्ती के बावजूद क्यों नहीं सुधर रही इंश्योरेंस सेक्टर की सेहत?बीते 6 साल में हेल्थ इंश्योरेंस की शिकायतों में 100% का उछाल, रडार पर आईं बड़ी कंपनियां।

बीमारी से ज्यादा 'क्लेम' ने रुलाया: इंश्योरेंस कंपनियों की म
बीमारी से ज्यादा 'क्लेम' ने रुलाया: इंश्योरेंस कंपनियों की मनमानी पर फूटा ग्राहकों का गुस्सा- फोटो : REPORTER

भारत में हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ी शिकायतों का दोगुना होना एक गंभीर चिंता का विषय है। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, भारत में हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ी शिकायतों में लगभग 45% से 100% तक की वृद्धि देखी गई है। इस उछाल का सबसे बड़ा कारण 'क्लेम रिजेक्शन' (दावा खारिज होना) और 'मिसेल-सेलिंग' (गलत जानकारी देकर पॉलिसी बेचना) है। बीमा लोकपाल (Ombudsman) के आंकड़ों के मुताबिक, लगभग 95% शिकायतें क्लेम के आंशिक भुगतान या पूरी तरह से खारिज होने से संबंधित होती हैं। कंपनियां अक्सर 'प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज' (पुरानी बीमारियों) को छिपाने या अस्पताल के बिलों में विसंगतियों का हवाला देकर क्लेम रोक लेती हैं।


तकनीकी खामियां और पारदर्शिता का अभाव

विश्लेषण से पता चलता है कि बीमा कंपनियां और अस्पतालों के बीच तालमेल की कमी का खामियाजा ग्राहकों को भुगतना पड़ता है। कई बार अस्पताल 'कैशलेस' सुविधा के लिए निर्धारित दरों से अधिक चार्ज करते हैं, जिसे बीमा कंपनियां देने से मना कर देती हैं। इसके अलावा, पॉलिसी की जटिल शब्दावली (Jargons) और 'हिडन क्लॉज' के कारण ग्राहक यह समझ ही नहीं पाते कि उनकी पॉलिसी में क्या कवर है और क्या नहीं। हाल ही में IRDAI ने 'केयर हेल्थ' जैसी कंपनियों पर भारी जुर्माना भी लगाया है क्योंकि वे ग्राहकों को शिकायत निवारण के सही रास्तों की जानकारी नहीं दे रही थीं।

नियामक (IRDAI) के कड़े कदम और समाधान

बढ़ती शिकायतों को देखते हुए बीमा नियामक IRDAI ने सख्त रुख अपनाया है। अब कंपनियों के लिए 'कैशलेस ऑथराइजेशन' की प्रक्रिया को 1 घंटे के भीतर शुरू करना और डिस्चार्ज के 3 घंटे के भीतर अंतिम फैसला लेना अनिवार्य कर दिया गया है। समाधान के रूप में, विशेषज्ञों का कहना है कि ग्राहकों को पॉलिसी लेते समय अपनी पुरानी बीमारियों की 'Brutal Honesty' (पूरी ईमानदारी) के साथ जानकारी देनी चाहिए। साथ ही, 'बाइटिंग पीरियड' और 'को-पेमेंट' जैसे क्लॉज को ध्यान से पढ़ना चाहिए ताकि क्लेम के समय कोई विवाद न हो।

डिजिटल समाधान और भविष्य की राह

शिकायतों के निपटारे के लिए 'बीमा भरोसा' (Bima Bharosa) पोर्टल और 'नेशनल हेल्थ क्लेम्स एक्सचेंज' (NHCX) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म गेम-चेंजर साबित हो रहे हैं। सरकार और नियामक का लक्ष्य है कि 2025-26 तक क्लेम सेटलमेंट की प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी और तेज बनाया जाए। ग्राहकों को सलाह दी जाती है कि यदि बीमा कंपनी उनकी बात नहीं सुनती है, तो वे सीधे बीमा लोकपाल या IRDAI के पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराएं। आने वाले समय में बीमा कंपनियों को अपनी साख बचाने के लिए ग्राहकों के भरोसे को प्राथमिकता देनी होगी, तभी इस सेक्टर का सही विस्तार हो पाएगा।