Ram Mandir: राम मंदिर में पीएम मोदी, अयोध्या में धर्मध्वजा के आरोहण का महोत्सव, जानिए किसने बसाई अयोध्या, क्या है सनातन धर्म में महत्व

अयोध्या पुनः अपनी प्राचीन तेजस्विता, वैदिक परंपरा और आध्यात्मिक सामर्थ्य को प्रकाशित कर रही है। धर्मध्वजा आरोहण का यह महोत्सव केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि उस सनातन चेतना का पुन:प्रकाश है,

Ayodhya for Dharmadhwaja Ritual
अयोध्या में धर्मध्वजा के आरोहण का महोत्सव- फोटो : reporter

Ram Mandir: अयोध्या धाम आज पुनः इतिहास के स्वर्णाक्षरों में अंकित होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीराम मंदिर के मुख्य शिखर पर धर्मध्वजा–आरोहण के पावन अनुष्ठान में सम्मिलित होने हेतु अयोध्या पहुंचे, जहाँ एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने वेद–मंत्रोच्चारण की मंगल ध्वनियों के मध्य उनका स्वागत किया। इसके उपरांत प्रधानमंत्री ने एक किलोमीटर लंबे भव्य रोड–शो में भाग लिया, जहाँ श्रद्धालुओं की अपार भीड़ ने पुष्पवर्षा और जय श्रीराम के घनघोर जयघोष के साथ उनका अभिनंदन किया।

रोड–शो के पश्चात प्रधानमंत्री सप्तमंदिर में पहुंचे और वैदिक विधि से पूजा–अर्चना की। ध्वजारोहण का पवित्र मुहूर्त 11:58 से 12:30 तक नियत है। श्रीराम मंदिर के 161 फ़ुट ऊँचे शिखर पर आरोहित की जाने वाली धर्मध्वजा 22 फ़ुट लंबी और 11 फ़ुट चौड़ी है, जो रामराज्य के आदर्शों, मर्यादा–पुरुषोत्तम की तेजोमय परंपरा और सनातन धर्म की अक्षय ऊर्जा का प्रतीक है। अनुष्ठान के उपरांत प्रधानमंत्री जन–समुदाय को संबोधित करेंगे तथा सायंकाल पूर्णाहुति संपन्न होगी।

राममंदिर की स्थापत्य–भव्यता स्वयं में एक दिव्य गाथा है। इसके पाँच उप–शिखरों एवं परकोटे में स्थित छह पूरक मंदिरों की शिखर–शृंखला इसे एक अद्वितीय देवलोक–सदृश आभा प्रदान करती है। ध्वजारोहण के समय श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ–क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से मंगल स्वस्ति गान प्रस्तुत किया जाएगा। देश के सुप्रसिद्ध कलाकार भजन, स्तोत्र, रामचरितमानस के चयनित प्रसंग तथा संत–सम्प्रदायों द्वारा रचित मंगल–गान सामूहिक रूप से गायन करेंगे। इसका संयोजन अयोध्या की सांस्कृतिक धरोहर के विद्वान साहित्यकार यतीन्द्र मिश्र के मार्गदर्शन में किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगभग 22 माह पश्चात पुनः रामलला के समक्ष उपस्थित हुए। पाँच अगस्त 2020 को महामारी के कठिन काल में “राम काज कीन्हें बिनु मोहिं कहा विश्राम” के उद्घोष के साथ उन्होंने मंदिर निर्माण की शिला रखी थी। इसके उपरांत 22 जनवरी 2024 को प्राण–प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई, जो सनातन आस्था की अनंत–आभा का पुनरुत्थान था।

अयोध्या का पौराणिक इतिहास अत्यंत व्यापक है। रामायण के अनुसार सरयू तट पर स्थित यह शुभ्र नगरी सूर्यवंशी वैवस्वत मनु द्वारा बसाई गई थी, जिनका जन्म लगभग 6673 ईसा पूर्व माना गया है। मनु ब्रह्माजी के पौत्र एवं कश्यप की संतान थे। मनु के दस पुत्रों में इक्ष्वाकु का वंश आगे चलकर अनगिनत प्रतापी राजाओं, ऋषियों और इसी कुल के परम तेजस्वी अवतार भगवान श्रीराम में फला फूला।

अयोध्या हिन्दू धर्म की सप्त पुरियों में सम्मिलित है-अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, अवंतिका और द्वारका जो मोक्ष–दायिनी मानी गई हैं। अथर्ववेद अयोध्या को “ईश्वर–निकेतन” कहकर सम्बोधित करता है। स्कंद पुराण में अयोध्या को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र पर अवस्थित बताया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार मनु ने ब्रह्माजी से नगर स्थापना का वर माँगा, तब विष्णु भगवान ने साकेतधाम को चयनित कर दिव्य शिल्पी विश्वकर्मा और महर्षि वशिष्ठ को नगर निर्माण हेतु प्रेषित किया। यही दिव्य साकेत आगे चलकर अवध, साकेत और अयोध्या नामों से प्रसिद्ध हुआ।

आज वही अयोध्या पुनः अपनी प्राचीन तेजस्विता, वैदिक परंपरा और आध्यात्मिक सामर्थ्य को प्रकाशित कर रही है। धर्मध्वजा आरोहण का यह महोत्सव केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि उस सनातन चेतना का पुन:प्रकाश है, जिसने युगों युगों से भारतभूमि को धर्म, मर्यादा और सत्य के पथ पर अग्रसर किया है।