West bengal News - सुप्रीम कोर्ट की हिदायत का नहीं हुआ असर, इलाहाबाद के बाद कोलकात्ता हाईकोर्ट ने कहा – नाबालिग का ब्रेस्ट छूना रेप का मामला नहीं

West bengal News - सुप्रीम कोर्ट की हिदायत का नहीं हुआ असर,

Kolkata -- नाबालिग लड़कियों के ब्रेस्ट को छूने को रेप बताने पर सुप्रीम  कोर्ट ने प्रयागराज हाईकोर्ट के फैसले पर हैरानी जाहिर की थी और कड़ी हिदायत दी थी। साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस नाराजगी के बाद अब कोलकात्ता हाईकोर्ट ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरह यह आदेश जारी कर दिया है। साथ ही इस मामले में आरोपी को जमानत पर रिहा कर दिया है।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि नशे में नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट छूने की कोशिश करना, प्रिवेंशन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंस (POCSO) एक्ट के तहत रेप की कोशिश नहीं है। इसे गंभीर यौन उत्पीड़न की कोशिश माना जा सकता है। 

हाईकोर्ट ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट से यह संकेत नहीं मिलता कि आरोपी ने बलात्कार या पेनिट्रेशन की कोशिश की थी। पीड़ित ने गवाही दी है कि आरोपी नशे में था और उसने उसके स्तन छूने की कोशिश की थी। यह POCSO एक्ट के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न हो सकता है, लेकिन प्रथम दृष्टया बलात्कार की कोशिश की ओर इशारा नहीं करता। हम आरोपी को जमानत दे रहे हैं।

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आरोपी को हुई थी 12 साल की सजा

बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को POCSO एक्ट की धारा 10 और IPC की धारा 448/376(2)(c)/511 के तहत दोषी ठहराया था। कोर्ट ने उसे 12 साल जेल और 50 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ आरोपी ने कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी।

आरोपी ने कहा कि वह दो साल से ज्यादा समय से जेल में बंद है। अदालत से इस मामले में जल्द फैसला आने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में उसे जमानत दी जाए। आरोपी ने अपनी याचिका में यह भी कहा था कि भले ही पीड़ित, जांच करने वाले डॉक्टर और अन्य गवाहों के सबूतों को सच माना गया हो, लेकिन आरोप साबित नहीं होते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने बताया असंवेदनशील फैसला

कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला तब आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऐसे ही कमेंट को असंवेदनशील बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। 19 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा था- नाबालिग के ब्रेस्ट पकड़ना, पायजामे का नाड़ा तोड़ना या घसीटकर पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश रेप नहीं है। 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ' यह बहुत गंभीर मामला है। हमें यह कहते हुए बहुत दुख है कि फैसला लिखने वाले जज में संवेदनशीलता की पूरी तरह कमी थी। इस पर रोक लगाते हैं।'


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