21 साल की उम्र में गया जेल, 60 में रिहाई, 39 साल बाद साक्ष्य के अभाव में कोर्ट ने किया बरी
Bettiah - न्याय में देरी भले ही हो, लेकिन यह अंततः मिलता जरूर है। चौतरवा थाने के पिपरा गांव से जुड़े 39 साल पुराने एक डकैती कांड में जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश चतुर्थ मानवेंद्र मिश्र की अदालत ने एक आरोपी विजय यादव को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है। जब यह मामला वर्ष 1986 में दर्ज हुआ था, तब विजय यादव की उम्र मात्र 21 वर्ष थी, और अब 60 वर्ष की उम्र में रिहाई मिलने पर उनकी आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़े। उन्होंने वर्षों बाद न्याय मिलने पर अदालत के प्रति आभार व्यक्त किया।
डकैती के मामले में हुए गिरफ्तार
अभियोजन पदाधिकारी मन्नू राव ने मामले की जानकारी देते हुए बताया कि यह घटना 7 अक्टूबर 1986 की है, जब सात से आठ की संख्या में अपराधियों ने पिपरा गांव में एक घर में घुसकर डकैती की थी। विरोध करने पर अपराधियों ने फायरिंग करते हुए भागने का प्रयास किया था। घटना के अगले दिन, गृहस्वामी शशिकांत दुबे ने चौतरवा थाना में कांड संख्या 100/86 दर्ज कराते हुए विजय यादव सहित कई अन्य लोगों को नामजद किया था।
15 जनवरी 1995 में आरोप पत्र दाखिल किया
पुलिस ने इस डकैती प्रकरण की जांच लगभग नौ वर्षों तक की और अंततः 15 जनवरी 1995 को न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया। आरोप पत्र के अनुसार, घटना की रात वादी अपने परिवार के साथ खाना खाकर सोने की तैयारी कर रहा था। तभी कुछ लोगों ने दरवाजा खटखटाया और खुद को 'पुलिस' बताया। वादी की माँ ने जब खिड़की से झाँका तो पता चला कि वे अपराधी थे, जो पीछे के रास्ते से घर में घुसकर गहनों और कीमती सामानों की लूटपाट करने लगे।
गांव की महिला से हुआ था विवाद
जाँच के दौरान यह भी सामने आया कि गांव की एक महिला का कुछ ग्रामीणों से विवाद हुआ था और कथित रूप से गलत आचरण के कारण उसके साथ मारपीट की गई थी। पुलिस का मानना था कि इसी रंजिश के चलते उस महिला ने अपराधियों को बुलाकर डकैती की घटना को अंजाम दिलवाया। मुकदमे की सुनवाई के दौरान, हरदी नदवा के उप मुखिया ने कोर्ट में लिखित बयान दिया कि वादी शशिकांत दुबे समेत अन्य लोग उनके पंचायत या पिपरा गांव के निवासी नहीं हैं, जिससे वादी की पहचान पर सवाल खड़े हुए।
लगभग चार दशकों तक चले इस मुकदमे में, सबूतों की कमी और गवाहों के बयानों में असंगति के चलते अदालत ने विजय यादव पर दोष सिद्ध नहीं पाया। इन सभी तथ्यों को देखते हुए, न्यायालय ने उन्हें ससम्मान बरी कर दिया। रिहाई के बाद विजय यादव ने भावुक होते हुए कहा कि उन्होंने अपने जीवन के सबसे अच्छे वर्ष अदालतों और जेल के चक्कर काटने में गँवा दिए, लेकिन आज सच्चाई की जीत हुई है।