चनपटिया विधानसभा: जहां बदले उम्मीदवार, पर नहीं बदला बीजेपी का विजय रथ

पश्चिमी चंपारण जिले की चनपटिया विधानसभा सीट बिहार की सियासत में एक दिलचस्प मिसाल है। इस सीट पर बीते दो दशकों से भारतीय जनता पार्टी का दबदबा कायम है। खास बात यह है कि यहां पार्टी ने उम्मीदवार तो बदले, लेकिन जीत का सिलसिला नहीं टूटा। वर्ष 2000 से लेकर अब तक बीजेपी लगातार 5 बार यह सीट जीत चुकी है।
चनपटिया का राजनीतिक इतिहास बेहद रंग-बिरंगा रहा है। 1957 में कांग्रेस की केतकी देवी ने इस सीट से पहली जीत दर्ज की थी। इसके बाद कांग्रेस ने 1972 तक अपना प्रभाव बनाए रखा। 1980 और 1995 के बीच कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने यहां से तीन बार जीत दर्ज की, लेकिन 1990 के बाद कांग्रेस और वाम दलों का प्रभाव धीरे-धीरे कम होता गया। साल 2000 से भाजपा ने इस सीट पर कब्जा जमाया, जो अब तक बरकरार है।
2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के उमाकांत सिंह ने कांग्रेस के अभिषेक रंजन को हराकर जीत दर्ज की। उमाकांत को 83,828 वोट मिले (47.69%) जबकि अभिषेक को 70,359 वोट (40.03%) हासिल हुए। इस चुनाव में कुल 61.46% मतदान हुआ था। 2015 में भाजपा के प्रकाश राय और जेडीयू के एनएन सैनी के बीच कांटे की टक्कर हुई थी। प्रकाश राय ने मात्र 464 वोटों से जीत हासिल की थी। वहीं, 2010 में भाजपा के चंद्र मोहन राय ने बीएसपी के एजाज हुसैन को 23 हजार वोटों से मात दी थी।
चनपटिया विधानसभा में जातीय समीकरण भी बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। यहां ब्राह्मण और यादव मतदाता प्रमुख हैं, साथ ही मुस्लिम, भूमिहार और कोइरी जातियां भी निर्णायक स्थिति में हैं। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 21.6% है। अनुसूचित जातियों के मतदाता लगभग 13.86% हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, चनपटिया में करीब 93.83% मतदाता ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं, जो यहां की राजनीतिक प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। 2010 में 55.77% मतदान हुआ था, जो 2015 में बढ़कर 63.84% तक पहुंच गया, लेकिन 2020 में यह थोड़ी गिरावट के साथ 61.46% पर रहा।