Bhagalpur News: भागलपुर के लोगों की उम्मीदों को लगा बड़ा झटका! 100 बेड के ESIC अस्पताल के काम पर लगा ग्रहण, जानें क्यों क्रेंद सरकार ने काम शुरू करने से किया इंकार
भागलपुर के सबौर में प्रस्तावित 100 बेड के ESIC अस्पताल के लिए चिह्नित जमीन को केंद्र सरकार ने अस्वीकार कर दिया है। अब जिला प्रशासन को नए सिरे से जमीन चिह्नित करने का निर्देश दिया गया है।

Bhagalpur News: भागलपुर के सबौर क्षेत्र में प्रस्तावित 100 बेड वाले कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) अस्पताल को तगड़ा झटका लगा है। केंद्र सरकार ने प्रस्तावित पांच एकड़ जमीन को अस्वीकार कर दिया है। इससे अब अस्पताल निर्माण में देरी तय मानी जा रही है। जमीन पर काम करने मना करने के पीछे केंद्र सरकार ने कई तरह की वजह बताई। उन्होंने बताया कि जमीन नीची है, जिससे बारिश या बाढ़ में जलजमाव की आशंका बढ़ा जाएगी। जमीन विवादित है, जिससे कानूनी अड़चनों की संभावना पैदा हो सकती है। केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने हाल में ही जमीन का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसके बाद इस फैसले की पुष्टि हुई है।
मामले पर श्रम संसाधन विभाग के सचिव दीपक आनंद ने बताया कि अब भागलपुर जिला प्रशासन को निर्देश दिया गया है कि वह नई उपयुक्त जमीन चिह्नित कर प्रस्ताव श्रम मंत्रालय को भेजे। इस प्रक्रिया के बाद ही ESIC अस्पताल निर्माण की दिशा में अगला कदम उठाया जाएगा। विभाग का उद्देश्य है कि यह अस्पताल पूर्वी बिहार के कर्मचारियों और उनके परिवारों को सस्ती और समर्पित चिकित्सा सेवा उपलब्ध करा सके।
जहां भागलपुर की परियोजना फिलहाल रुकी हुई है, वहीं दूसरी ओर मुजफ्फरपुर में 100 बेड के ESIC अस्पताल की योजना को राज्य कैबिनेट से मंजूरी मिल चुकी है।जमीन को केंद्र सरकार को हस्तांतरित करने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। 2025 के अंत तक निर्माण कार्य शुरू होने की संभावना है। इलाज सेवाएं चालू होने में 2 साल का समय लग सकता है। यह अंतर दिखाता है कि स्थानीय प्रशासन की तत्परता योजनाओं की गति को कितना प्रभावित करती है।
कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) देश के संगठित क्षेत्र के श्रमिकों और उनके परिजनों को निःशुल्क या सब्सिडी पर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करता है। भागलपुर में अस्पताल बनने से कर्मचारियों और उनके परिजनों को प्राथमिक और विशेष चिकित्सा सुविधाएं मिलेगी। नियोक्ताओं और श्रमिकों के बीच विश्वास बनेगा। भागलपुर जैसे शहर में यह अस्पताल बनने से पूर्व बिहार के हजारों श्रमिकों को राहत मिलती, लेकिन अब इसमें देरी होना एक सामाजिक और प्रशासनिक चुनौती बन गया है।