Bihar Bridge News: शर्मनाक: खेत के बीच में खड़ा कर दिया पुल,बिना एप्रोच पथ का भारत का पहला ब्रिज, सरकारी लापरवाही...हद है

Bihar Bridge News: खेत के बीच में एक पुल स्थापित किया गया है, जो बिना एप्रोच पथ के भारत का पहला पुल है। यह सरकारी लापरवाही की एक गंभीर मिसाल है।

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बिना एप्रोच पथ का भारत का पहला ब्रिज- फोटो : social Media

देश में विकास की गति को तेज करने के लिए सरकारें अनेक योजनाएं और परियोजनाएं लाती रहती हैं, लेकिन कई बार ये योजनाएं अधूरी तैयारी और खराब कार्यान्वयन की वजह से हास्यास्पद स्थिति पैदा कर देती हैं। ऐसी ही एक तस्वीर सामने आई है, जहां ग्रामीण क्षेत्र में एक शानदार पुल तो बना दिया गया, लेकिन उस तक पहुंचने के लिए कोई सड़क या एप्रोच रोड नहीं है। यह मामला न केवल सरकारी योजनाओं की खामियों को उजागर करता है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी परेशानी का सबब बन गया है। 

भागलपुर के गोराडीह  के एक ग्रामीण क्षेत्र की है, जहां ग्रामीण कार्य विभाग की एक योजना के तहत लगभग 3 करोड़ रुपये की लागत से एक पुल का निर्माण किया गया। यह पुल खेतों के बीच में खड़ा है और इसका उद्देश्य आसपास के गांवों को आपस में जोड़ना था। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस पुल तक पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं बनाई गई। न तो पुल पर चढ़ने के लिए कोई रास्ता है, और न ही उतरने के लिए। नतीजा? यह भव्य पुल आज खेतों के बीच एक स्मारक की तरह खड़ा है, जिसका कोई उपयोग नहीं हो रहा।

स्थानीय निवासियों के अनुसार, इस पुल की योजना बनाते समय संबंधित अधिकारियों ने न तो जमीन का ठीक से सर्वे किया और न ही स्थानीय लोगों से कोई सलाह ली। एक किसान ने बताया, "पुल बन गया, लेकिन हम उसे इस्तेमाल कैसे करें? न रास्ता है, न सीढ़ी। हमारे खेतों के बीच यह बस खड़ा है। अगर बारिश हो जाए, तो कीचड़ की वजह से हालत और खराब हो जाती है।"

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भागलपुर के गोराडीह के चौर इलाके में पिपरा काली स्थान से राजनपुर के बीच पुल बना है। विभाग से बनाया गया बाई करोड़ का यह पुल खेतों के बीच बगैर एप्रोच पथ के खड़ा कर दिया गया है। एप्रोच के नाम पर सिर्फ जैसे-नौसे मि‌ट्टी डालकर पैदल चलने के लिए सस्ता बना दिया गया है।इस मामले ने स्थानीय स्तर पर काफी चर्चा बटोरी है। ग्रामीणों का कहना है कि निर्माण शुरू होने से पहले ही उन्हें इस योजना पर संदेह था, क्योंकि कोई ठोस जानकारी नहीं दी गई थी। कुछ लोगों ने बताया कि निर्माण के दौरान ठेकेदार और अधिकारियों ने जल्दबाजी में काम पूरा किया, लेकिन एप्रोच रोड बनाने की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली। 

जब इस बारे में ग्रामीण कार्य विभाग के अधिकारियों से बात की गई, तो उन्होंने जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डाल दी। एक अधिकारी ने दावा किया कि एप्रोच रोड का निर्माण दूसरी योजना के तहत होना था, जिसके लिए बजट अभी स्वीकृत नहीं हुआ है। वहीं, एक अन्य अधिकारी ने कहा कि स्थानीय प्रशासन को जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी करनी थी, जो अब तक नहीं हुई। इस बीच, ग्रामीणों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है, क्योंकि उनके लिए यह पुल बेकार साबित हो रहा है।

इस पुल की वजह से न केवल ग्रामीणों की उम्मीदें टूटी हैं, बल्कि यह सोशल मीडिया पर भी उपहास का विषय बन गया है। कई लोग इसे "विकास की आधी तस्वीर" कहकर तंज कस रहे हैं। एक स्थानीय निवासी, श्याम सुंदर, ने कहा, "हमारे गांव में बिजली, पानी और सड़क की मूलभूत समस्याएं जस की तस हैं। ऊपर से यह पुल बना दिया, जो किसी काम का नहीं। इससे अच्छा तो पैसा स्कूल या अस्पताल में लगाया जाता।"

यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की लापरवाही सामने आई हो। देश के कई हिस्सों में ऐसी परियोजनाएं देखने को मिलती हैं, जहां बिना पूरी योजना के निर्माण कार्य शुरू कर दिए जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी परियोजनाओं में पारदर्शिता की कमी, स्थानीय लोगों की भागीदारी न होना और अधिकारियों की जवाबदेही का अभाव मुख्य कारण हैं।

भागलपुर के गोराडीह के चौर इलाके में पिपरा काली स्थान से राजनपुर के बीच बना  पुल, जो विकास का प्रतीक बनना चाहिए था, आज सरकारी लापरवाही और अधूरी योजना का उदाहरण बन गया है। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या विकास का मतलब केवल भव्य संरचनाएं बनाना है, या फिर ऐसी सुविधाएं देना है जो वास्तव में लोगों के काम आएं। जब तक ऐसी परियोजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं आएगी, तब तक "विकास की आधी तस्वीर" जैसे मामले सामने आते रहेंगे।बहरहाल अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस पुल को उपयोगी बनाने के लिए कदम उठाएगा, या यह खेतों के बीच खड़ा एक और सरकारी सपना बनकर रह जाएगा?