Marriage of Shiva and Parvati: बिहार में अब तक जितनी प्राचीन मूर्तियां मिली हैं, उनमें सबसे अधिक शिव और पार्वती से संबंधित मूर्तियां हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण बक्सर जिले के चौसागढ़ से प्राप्त गुप्त कालीन (चौथी-पांचवी शताब्दी) की टेराकोटा मूर्ति है, जिसमें शिव और पार्वती के विवाह के दृश्य को खूबसूरती से उकेरा गया है। यह मूर्ति अपनी अद्वितीय कलात्मकता और धार्मिक महत्ता के कारण खास मानी जाती है।
चौसागढ़ की गुप्त कालीन मूर्ति
मूर्ति विशेषज्ञ डॉ. शिव कुमार मिश्र के अनुसार, चौसागढ़ से मिली कल्याण सुंदर की मूर्ति बिहार की प्राचीनतम मूर्तियों में से एक है। यह टेराकोटा से बनी हुई है, जो अब तक मिली मिट्टी की सबसे प्राचीन मूर्तियों में गिनी जाती है। इससे पहले बिहार में टेराकोटा या मिट्टी की कोई दूसरी मूर्ति नहीं मिली है। बाद में मिली अधिकतर मूर्तियां पत्थर से बनी हुई हैं।
मूर्ति का विवरण: शिव-पार्वती विवाह दृश्य
चौसागढ़ की इस मूर्ति में शिव और पार्वती के विवाह का दृश्य दिखाया गया है, जिसे कल्याण सुंदर नाम से जाना जाता है। इस मूर्ति में शिव अपने दाहिने हाथ से पार्वती के हाथ को पकड़ते हुए त्रिभंग मुद्रा में खड़े हैं, जबकि पार्वती भी त्रिभंग मुद्रा में आभूषणों से सुसज्जित दिख रही हैं। उनके गले में मोटी माला और बाहों व कमर में गहने शोभायमान हैं। मूर्ति के मध्य ब्रह्मा जी पुरोहित की भूमिका में बैठे हैं, जो विवाह संस्कार को संपन्न कर रहे हैं।
विष्णु की भूमिका: कन्यादान का दृश्य
मूर्ति में खास बात यह है कि कुछ चित्रों में भगवान विष्णु को पार्वती के पिता के रूप में दिखाया गया है, जो कन्यादान करते हुए नजर आते हैं। यह दृश्य भारत के विभिन्न धार्मिक स्थलों पर उकेरे गए हैं, जैसे एलोरा की गुफाओं में भी इस तरह का चित्रण मिलता है। इसके अलावा, मूर्तियों में गणेश और कार्तिकेय का भी अंकन किया गया है।
पालकालीन मूर्तियों का भी योगदान
बिहार में मिली प्राचीन मूर्तियों में से कई पालकालीन (नौवीं-दसवीं शताब्दी) हैं, जिनमें चतुर्मुख ब्रह्मा का अंकन मिलता है। चंद्रधारी संग्रहालय (दरभंगा) और नारद संग्रहालय (नवादा) में कल्याण सुंदर की मूर्तियां सुरक्षित रखी गई हैं। इन मूर्तियों में भी शिव और पार्वती के पाणिग्रहण संस्कार को दर्शाया गया है।
बिहार की मूर्तिकला की महत्ता
बिहार में पाई गई ये प्राचीन मूर्तियां न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि भारतीय मूर्तिकला की समृद्ध विरासत का भी प्रतीक हैं। विशेष रूप से चौसागढ़ की मूर्ति, जिसे अब तक की सबसे पुरानी टेराकोटा मूर्ति माना जाता है, इस राज्य की कला और संस्कृति को नए आयाम देती है।