Sonpur Fair: सोनपुर मेला का उद्घाटन आज, यहां होता है हर-हर और हरि-हर का संगम, अयोध्या राम मंदिर मॉडल बनेगा मुख्य आकर्षण

Sonpur Fair:भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और व्यापारिक विरासत का प्रतीक विश्व-प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला का उद्घाटन आज होगा...

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सोनपुर मेला का उद्घाटन आज- फोटो : social Media

Sonpur Fair:भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और व्यापारिक विरासत का प्रतीक विश्व-प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला का उद्घाटन आज होगा,  इसको लेकर ज़बरदस्त चर्चा भी है। आमजन का कहना है कि यह मेला केवल बिहार का नहीं, बल्कि देश की आबरू और पहचान है। सोनपुर मेला देश की शान है, सिर्फ़ बिहार की नहीं। अंतरराष्ट्रीय पहचान रखने वाले इस ऐतिहासिक मेले का उद्घाटन यदि राज्यपाल या मुख्यमंत्री के हाथों होता, तो इसकी गरिमा, प्रतिष्ठा और रौनक और बढ़ जाती। लेकिन इस बार उद्घाटन मात्र सारण प्रमंडल के आयुक्त द्वारा किए जाने की जानकारी सामने आते ही निराशा की लहर दौड़ गई। कई लोगों ने खुले शब्दों में कहा कि जब राजगीर मेला के समय मुख्यमंत्री स्वयं जाकर तैयारियों का जायज़ा लेते हैं, तो वर्ल्ड फेमस सोनपुर मेला के उद्घाटन में मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। 

बता दें कि सोनपुर मेला सिर्फ़ एक इवेंट नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक रूह है। यह स्थल देश के चार प्रमुख धार्मिक और पवित्र क्षेत्रों में शुमार है, जहाँ गंगा और गंडकी का पावन संगम होता है। इसी पावन धरती पर विराजते हैं बाबा हरिहरनाथ, जिनके विग्रह में शिव और विष्णु दोनों स्वरूप एक साथ प्रतिष्ठित हैं। इसी कारण इसे मिनी महाकुंभ”भी कहा जाता है। एशिया का सबसे प्राचीन, आस्थावान और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला केवल एक उत्सव नहींयह भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, लोक-परंपरा, आस्था और विरासत का जीवंत पर्व है। यह वही पवित्र भूमि है जहाँ “हरि” (भगवान विष्णु) और “हर” (भगवान शिव) की एक साथ आराधना होती है। यही अद्भुत एकता इस क्षेत्र को हरिहर क्षेत्र बनाती है और हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर यहाँ आस्था का महा-संगम सजता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार सोनपुर की पहचान का आधार है गजेंद्र मोक्ष की दिव्य गाथा। कहा जाता है—राजा इंद्रद्युम्न श्रापवश हाथी बने और गंधर्व हुहु मगरमच्छ में परिवर्तित हो गया। गंगा और गंडक के संगम तट पर दोनों के बीच भयंकर संघर्ष हुआ। अंत में जब गजेंद्र ने अखंड श्रद्धा से भगवान विष्णु का स्मरण किया, तो वे स्वयं प्रकट हुए और सुदर्शन चक्र से ग्राह का वध कर अपने भक्त को स्वर्गीय मुक्ति दी।यही वही स्थल आज कोनहारा घाट कहलाता है जिसका नाम उसी प्रश्न से जुड़ा है, “कौन हारा?” अर्थात उस दिव्य क्षण का स्मरण, जब अधर्म पर धर्म की विजय हुई।एक अन्य मान्यता कहती है कि सोनपुर की यह धरती दो भक्त भाइयोंजय और विजयके मिलन की साक्षी है। एक विष्णु का उपासक, दूसरा शिव का भक्त। वाद-विवाद और मतभेद समाप्त होने के बाद दोनों ने इसी भूमि पर मिलकर हरिहरनाथ मंदिर की स्थापना की, जो आज भी अद्वैत भक्ति और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। इसी स्थान से कार्तिक पूर्णिमा स्नान और मेले की परंपरा सहस्त्राब्दियों से निरंतर प्रवाहित होती रही है। लोक-मान्यताओं में यह भी वर्णित है कि भगवान श्रीराम, जनकपुर की यात्रा के दौरान इस पावन धरती पर आए। यहाँ उन्होंने गंगा–गंडक संगम तट पर भगवान शंकर की पूजा-अर्चना की और हरिहरनाथ मंदिर की पुनः प्रतिष्ठा की। कहा जाता है कि इसी उपासना और आशीर्वाद के पश्चात वे मिथिला पहुँचे और भगवान शिव के धनुष का भंग कर माता सीता का वरण किया। इसलिए सोनपुर की इस भूमि को रामायणकालीन विरासत का पवित्र अध्याय भी माना जाता है।

सदियों से यह मेला दुनिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता रहा है। लेकिन आज इसकी पहचान केवल पशु व्यापार तक सीमित नहीं—यह स्पिरिचुअल टूरिज़्म, ट्रेडिशनल बिज़नेस, लोक-कल्चर और अंतरराष्ट्रीय विरासत का शानदार संगम है। हर साल लाखों श्रद्धालु, विदेशी पर्यटक और व्यापारी यहाँ जुटते हैं, जिससे सोनपुर की धरा पर रौनक, रहमत और रिवायत एक साथ दिखाई देती है।

उधर, प्रशासन ने सुरक्षा और सुविधाओं को लेकर विशाल इंतज़ाम किए हैं। जिलाधिकारी अमन समीर और वरीय पुलिस अधीक्षक डॉ. कुमार आशीष ने मेला क्षेत्र का निरीक्षण कर सुरक्षा प्रबंधन, ट्रैफिक सिस्टम और पब्लिक फ़ैसिलिटी की समीक्षा की। मेला परिसर में अस्थायी थाना, पुलिस पिकेट, कंट्रोल रूम, सीसीटीवी कैमरे, पार्किंग, वन-वे यातायात, महिला सहायता केंद्र, सूचना केंद्र और लोक उद्घोषणा प्रणाली की व्यवस्था की गई है।िलहाल, मेले की रौनक तो बरकरार है, लेकिन आमजन अब भी सरकार से यही पूछ रहा है जब सोनपुर की पहचान पूरी दुनिया में है, तो उसके उद्घाटन की शान क्यों घटाई गई?