Bihar Famous Sweets Tilkut: बिहार के गया जिले का तिलकुट पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। सर्दियों की शुरुआत से ही गया की गलियों में तिलकुट की सोंधी महक महसूस होने लगती है। खासकर मकर संक्रांति पर तिलकुट का महत्व बढ़ जाता है। इस दिन चूड़ा-दही के साथ तिलकुट खाने की परंपरा है। गया का तिलकुट स्वाद और खस्तापन के लिए देश-विदेश में एक प्रमुख मिष्ठान के रूप में जाना जाता है। मकर संक्रांति के करीब एक महीने पहले ही यहां की गलियों में तिलकुट बनाने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं, जिससे सोंधी महक और तिल कूटने की आवाज माहौल को मकर संक्रांति के रंग में रंग देती है।
गया से शुरू हुई तिलकुट बनाने की परंपरा
ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से तिलकुट बनाने की परंपरा गया की धरती से शुरू हुई थी। हिंदू धर्म के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन तिल दान और उसका सेवन पुण्यदायक माना गया है। मकर संक्रांति के एक-डेढ़ महीने पहले से गया में तिलकुट बनाने का काम शुरू हो जाता है। हाथ से कूटे गए गया के तिलकुट का स्वाद और खास्तापन इसे खास बनाता है। दूसरे स्थानों की तुलना में यहां का तिलकुट ज्यादा सोंधा और स्वादिष्ट होता है।
रमना रोड और टेकरी रोड तिलकुट निर्माण का केंद्र
गया जिले का रमना रोड और टेकरी रोड तिलकुट निर्माण के लिए सबसे प्रसिद्ध है। इसके अलावा कोयरी बारी, स्टेशन रोड और डेल्हा जैसे इलाकों में भी तिलकुट का निर्माण बड़े पैमाने पर होता है। गया में करीब 200 से 250 घरों में तिलकुट कूटने का काम किया जाता है। महिलाएं भी इस व्यवसाय में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। गया के खस्ता तिलकुट की आपूर्ति झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में होती है। इतना ही नहीं, अब इसकी डिमांड विदेशों तक पहुंच गई है। बोधगया आने वाले विदेशी पर्यटक यहां का तिलकुट जरूर अपने साथ ले जाते हैं।
गया का तिलकुट कैसे बनता है?
तिलकुट बनाने की प्रक्रिया कारीगरों के अनुभव और मेहनत का नतीजा होती है:
सबसे पहले चीनी और पानी को कढ़ाई में गर्म किया जाता है।
घानी तैयार करने के बाद चीनी के घोल को चिकने पत्थर पर ठंडा होने के लिए रखा जाता है।
इसके बाद तिल को गरम कढ़ाई में भूना जाता है।
छोटे-छोटे लोई बनाकर उन्हें हाथों से कूटा जाता है।
अंत में तिलकुट को सूखने के लिए रखा जाता है ताकि वह खस्ता हो जाए।
तिलकुट की लोकप्रियता
गया के तिलकुट की खासियत उसकी गुणवत्ता, स्वाद और परंपरा में छिपी है। इसे हाथों से कूटने की कला गया के तिलकुट को अन्य स्थानों के तिलकुट से अलग बनाती है। यही कारण है कि यह मिठाई देश-विदेश में इतनी प्रसिद्ध है।