Chhath Puja 2024: छठ महापर्व दीपावली के बाद देशभर में खासतौर पर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व में सूर्य देवता की पूजा की जाती है और छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं। छठ पूजा के दौरान आपने अक्सर देखा होगा कि महिलाएं सिर से लेकर नाक तक सिंदूर लगाती हैं, जो इस पर्व की एक विशिष्ट परंपरा है। आइए जानते हैं इस परंपरा का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व।
छठ पर्व का महत्व
छठ पर्व पर सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा की जाती है। इस पर्व की पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम और माता सीता जब वनवास से अयोध्या लौटे, तो लोगों ने व्रत रखकर सूर्य देव की आराधना की थी। उसी समय से छठ पर्व की परंपरा चली आ रही है। इस पर्व में महिलाएं विशेष रूप से व्रत रखती हैं और पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं, जिससे उन्हें सुख, समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है।
सिर से नाक तक सिंदूर लगाने का महत्व
छठ पूजा के दौरान महिलाएं सिर से लेकर नाक तक सिंदूर लगाती हैं, जो पति की लंबी उम्र और सुखद गृहस्थ जीवन की कामना का प्रतीक माना जाता है।
सिंदूर का रंग और सूर्य की लालिमा: छठ पर्व के दौरान सिंदूर को सूर्य की लालिमा के समान माना जाता है। यह लंबा सिंदूर का टीका पति की लंबी उम्र की कामना को दर्शाता है।
सिंदूर की लंबी रेखा का प्रतीकात्मक महत्व: धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस प्रकार से सिंदूर लगाने से छठी मैया की विशेष कृपा प्राप्त होती है और परिवार में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद बना रहता है।
नारंगी सिंदूर का विशेष महत्व
आमतौर पर महिलाएं लाल रंग का सिंदूर लगाती हैं, लेकिन छठ पर्व पर नारंगी रंग का सिंदूर लगाने का विशेष महत्व है। यह रंग शुभता का प्रतीक माना जाता है और इसे भगवान हनुमान जी के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
भगवान हनुमान और सिंदूर का संबंध: हनुमान जी ब्रह्मचारी हैं और शादीशुदा महिलाओं के लिए सिंदूर उनके गृहस्थ जीवन की शुरुआत का प्रतीक होता है। विवाह के बाद ब्रह्मचर्य का समापन और ग्रहस्थ जीवन की शुरुआत मानी जाती है, और नारंगी सिंदूर इसी का प्रतीक होता है।
इस परंपरा का पालन बिहार, झारखंड और अन्य स्थानों में भी किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नारंगी सिंदूर लगाने से विशेष रूप से छठी मैया की कृपा प्राप्त होती है।