Bihar News: कैमूर पहाड़ी पर बसे दर्जनों गांवों के लोग आजादी के 75 साल बाद भी पक्की सड़क का सपना देख रहे हैं। रोहतासगढ़ और पिपरडीह पंचायत के ग्रामीण तो इस समस्या से विशेष रूप से जूझ रहे हैं। ये ग्रामीण दशकों से जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से सड़क बनाने का आश्वासन पाते आ रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है।
इन गांवों में लुस या मोरंग की सड़क तक नहीं है। ग्रामीणों को टेढ़े-मेढ़े रास्तों और मिट्टी के रास्तों पर चलकर अपनी जिंदगी गुजारनी पड़ती है। बीमार होने पर डोली पर लादकर अस्पताल ले जाना पड़ता है।
वन विभाग की सड़क भी जर्जर
रोहतास प्रखंड के बुधुवां गांव से बंडा गांव तक जाने वाली वन विभाग की सड़क भी बेहद खराब हालत में है। बारिश में तो इस रास्ते पर चलना नामुमकिन सा हो जाता है। वन विभाग ने कई सालों से इस सड़क की मरम्मत नहीं कराई है। नतीजतन, ग्रामीणों को अस्पताल पहुंचने में 15 से 45 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है।
सरकारी सुविधाओं से वंचित
सरकार द्वारा गर्भवती महिलाओं के लिए निःशुल्क एंबुलेंस की सुविधा दी गई है, लेकिन खराब सड़कों के कारण एंबुलेंस इन गांवों तक नहीं पहुंच पाती। शादी-विवाह जैसे समारोहों में भी ग्रामीणों को काफी परेशानी होती है।
मुख्यमंत्री का दौरा भी बेअसर
2018 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस क्षेत्र का दौरा किया था और ग्रामीणों से मुलाकात की थी, लेकिन उसके बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।
पर्यटन को भी नुकसान
इस सड़क से पड़ोसी राज्य झारखंड के सैकड़ों लोग गुप्ताधाम आते जाते हैं। सड़क की खराब हालत से पर्यटन को भी नुकसान पहुंच रहा है।