शास्त्रों में एकादशी को "पुण्य की एकादशी" कहा गया है, क्योंकि यह दिन आत्मशुद्धि और धार्मिक साधना के लिए सर्वोत्तम होता है। इस दिन श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना विशेष फलदायक माना गया है। माना जाता है कि जो भी इस दिन पवित्र भाव से विष्णु सहस्रनाम का पाठ करता है, उसे सहस्र नाम जप के समान पुण्य प्राप्त होता है, और उसके घर में सुख, शांति, और समृद्धि का वास होता है।
शास्त्रों के अनुसार एकादशी पर इन परंपराओं का पालन करें
श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ
पवित्र भाव से श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना आज के दिन विशेष पुण्यकारी माना गया है। इसके प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में खुशहाली और सकारात्मकता का आगमन होता है।
व्रत का पालन करें
एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु की आराधना करें। इससे आत्मशुद्धि होती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति को अपने पापों से मुक्ति और भगवान की अनुकंपा प्राप्त होती है।
तुलसी जी की पूजा
एकादशी के दिन तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाएं और भगवान विष्णु का ध्यान करें। तुलसी और विष्णु की पूजा से अद्भुत आध्यात्मिक लाभ होते हैं और जीवन में सुख-शांति आती है।
पंचामृत स्नान
एकादशी के दिन विशेष रूप से पंचामृत स्नान करें। इसके लिए दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल का उपयोग करें। इससे शरीर और आत्मा दोनों की शुद्धि होती है।
बाल कटवाने से करें परहेज
एकादशी के दिन बाल कटवाना अशुभ माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह दिन आत्मशुद्धि और पुण्य लाभ का होता है, और इसलिए इस दिन किसी भी प्रकार की कटाई-छटाई से बचना चाहिए। बाल कटवाना इस दिन की पवित्रता में बाधा डालता है और इसे अशुभ संकेत माना जाता है।
चावल और साबूदाना का सेवन क्यों है निषेध
धार्मिक नियमों के अनुसार, एकादशी के दिन चावल और साबूदाना का सेवन वर्जित है। चावल में जल तत्व होता है, और यह आलस्य को बढ़ाता है, जिससे उपवास का महत्व कम हो जाता है। उपवास के दौरान चावल और साबूदाना जैसे पदार्थों से बचना शुद्धता और साधना में वृद्धि करता है।
सेम (शिम्बी) का सेवन न करें, जानें इसके पीछे का कारण
एकादशी के दिन शिम्बी (सेम) का सेवन भी वर्जित माना गया है। मान्यता है कि इस दिन शिम्बी का सेवन करने से संतान पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। शास्त्रों में संतान के स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए एकादशी के दिन इस परंपरा का पालन करने का निर्देश है।
आंवले के रस से स्नान का महत्व
दोनों पक्षों की एकादशियों पर आंवले के रस से स्नान करने की परंपरा है। माना जाता है कि ऐसा करने से पापों का नाश होता है और आत्मा की शुद्धि होती है। आंवला स्वयं शीतलता और पवित्रता का प्रतीक है, और इसके रस से स्नान करने से व्यक्ति को शुद्धि और धार्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।