BUXAR : धर्म और संस्कृति की अद्भुत धरोहर, बक्सर का पंचकोसी मेला हर वर्ष लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह मेला प्रभु श्री राम, लक्ष्मण और मुनि विश्वामित्र के बक्सर आगमन और उनकी पवित्र पंचकोसी यात्रा की स्मृति में आयोजित होता है।
क्या है मान्यता
पौराणिक कथा के अनुसार, ताड़का वध के बाद मुनि विश्वामित्र ने श्रीराम और लक्ष्मण को "नारी दोष" से मुक्त होने के लिए पंचकोसी यात्रा करने का निर्देश दिया। इस यात्रा के पांच प्रमुख पड़ावों में बक्सर अंतिम और सबसे पवित्र स्थल है। मान्यता है कि बक्सर की इस तपोभूमि पर श्रीराम और उनके साथियों ने आत्मशुद्धि के लिए प्रवास किया और यहीं उन्हें स्थानीय निवासियों द्वारा लिट्टी-चोखा परोसा गया, जो आज भी इस मेले का प्रमुख प्रसाद है।
लिट्टी-चोखा की महिमा: हर घर में सजी परंपरा
पंचकोसी मेला के दौरान बक्सर में लिट्टी-चोखा केवल प्रसाद नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता और सादगी का प्रतीक बन जाता है। इस वर्ष की खास बात यह है कि मेले के अवसर पर बक्सर के हर घर में लिट्टी-चोखा ही बनाया जाता है। यह परंपरा न केवल यहां की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है, बल्कि सामूहिक भक्ति और एकता का संदेश भी देती है।
कैसे बनती है लिट्टी
लिट्टी, जो सत्तू से भरी होती है और पारंपरिक मिट्टी के चूल्हे पर सेंकी जाती है, सादगी और तपस्वी जीवन का प्रतीक मानी जाती है। चोखा, जो भुने हुए बैंगन, टमाटर और मसालों से तैयार किया जाता है, उसमें भारतीय स्वाद और प्राकृतिक पोषण का मेल है। माना जाता है कि लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण करने से आत्मिक शांति और शारीरिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
पंचकोसी मेला का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व
हर साल लाखों श्रद्धालु इस पवित्र मेले में शामिल होकर पंचकोसी यात्रा पूरी करते हैं। यात्रा के समापन पर बक्सर में लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण करना आध्यात्मिकता और प्रभु श्रीराम के आदर्शों को अपनाने का प्रतीक है। मेले के दौरान बक्सर की गलियों में भक्ति गीत, रामायण पाठ और लोकनृत्य की गूंज सुनाई देती है।
हर घर में बनता है लिट्टी चोखा
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस मेले के दौरान लिट्टी-चोखा का हर घर में बनना यह दर्शाता है कि यह भोजन न केवल शारीरिक पोषण का स्रोत है, बल्कि यह बक्सर के लोगों की आध्यात्मिक परंपरा और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा भी है। आरा जिले से आई सोनी पांडेय ने बताया कि भगवान राम नारी हत्या के दोष से बचने के लिए विश्वामित्र महामुनि के आज्ञा अनुसार पंचकोसी की यात्रा की और उसी परम्परा को आज तक हम मनाते आ रहे है।
सामूहिक चेतना का उत्सव
बक्सर पंचकोसी मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और समाज की सामूहिक चेतना का उत्सव है। लिट्टी-चोखा, जो साधारण भोजन होते हुए भी असाधारण महत्व रखता है, इस मेले की पहचान बन चुका है। श्रद्धालु इसे ग्रहण कर न केवल आध्यात्मिक तृप्ति का अनुभव करते हैं, बल्कि प्रभु श्रीराम की तपस्या और त्याग के संदेश को भी अपने जीवन में उतारते हैं।
बक्सर से संदीप वर्मा की रिपोर्ट