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Sushil Kumar Modi Anniversary: सुशील मोदी कैसे साबित हुए BJP के लिए तुरुप का इक्का? जानें नीतीश के जोड़ीदार बनने की दिलचस्प कहानी

सुशील मोदी का राजनीतिक सफर और उनके योगदान को बिहार की राजनीति में हमेशा याद किया जाएगा। उनके साथ जुड़े कई किस्से और उनके द्वारा की गई नीतियां आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा रहेंगी।

Sushil Kumar Modi Anniversary: सुशील मोदी कैसे साबित हुए BJP के लिए तुरुप का इक्का? जानें नीतीश के जोड़ीदार बनने की दिलचस्प कहानी
सुशील कुमार मोदी BJP के थे तुरुप का इक्का- फोटो : social media

Sushil Kumar Modi Anniversary: बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी का आज 5 जनवरी को 73वीं जयंती है। उनका राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प रहा है और उन्होंने बिहार में बीजेपी को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भागलपुर संसदीय सीट पर 2004 का चुनाव उनके राजनीतिक करियर का एक खास मोड़ था, जहां उन्होंने अपनी सियासी कुशलता से भागलपुर की राजनीति में भी अपनी छाप छोड़ी थी।

सुशील मोदी का 2004 का चुनाव

भागलपुर सीट पर 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के अंदर दावेदारी को लेकर तनातनी चल रही थी। भागलपुर के तत्कालीन विधायक अश्विनी कुमार चौबे और निशिकांत दुबे के बीच प्रतिद्वंद्विता थी। इस संघर्ष के बीच सुशील मोदी को उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने यह लड़ाई खत्म की। सुशील मोदी का यह पहला और अंतिम लोकसभा चुनाव था, जिसमें उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की थी। वे 3,45,137 वोटों के साथ विजयी हुए, जबकि उनके प्रतिद्वंदी सीपीएम के सुबोध राय को 2,27,298 वोट मिले थे।

भागलपुर से मोदी का खास रिश्ता

सुशील मोदी ने हमेशा भागलपुर को अपनी "भाग्यभूमि" कहा। उन्होंने कहा था कि इस सीट से सांसद रहते हुए वे बिहार के उपमुख्यमंत्री बने और बीजेपी सत्ता में आई। भागलपुर से उनका सीधा राजनीतिक रिश्ता 2006 में तब खत्म हो गया जब उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दिया, लेकिन व्यक्तिगत रूप से वे अपने समर्थकों और पार्टी के कार्यकर्ताओं से जुड़े रहे।

मोदी का कार्यकाल

सुशील मोदी का सांसद के रूप में कार्यकाल करीब दो साल का रहा, लेकिन इस दौरान उन्होंने भागलपुर में पार्टी को मजबूत किया और अपने कार्यकर्ताओं के साथ लगातार संवाद बनाए रखा। उनके साथ काम कर चुके नेताओं का कहना था कि वे कभी झूठे आश्वासन नहीं देते थे, जो काम नहीं हो सकता था, वह सीधे बता देते थे।

चौबे-मोदी के रिश्ते

मोदी और अश्विनी चौबे की मित्रता लंबे समय तक चर्चा में रही, लेकिन 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव के बाद, जब सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री बने और अश्विनी चौबे को मंत्री पद मिला, तब दोनों के बीच राजनीतिक दूरी बढ़ गई। इसके बाद चौबे ने मोदी के खिलाफ बयानबाजी भी की थी।

अंतिम राजनीतिक क्षण

हाल के वर्षों में जब सुशील मोदी को राज्यसभा के लिए रिपीट नहीं किया गया, तब यह चर्चा चली थी कि वे भागलपुर से चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, उन्होंने इस पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी थी। उनके निधन के बाद यह स्पष्ट हुआ कि वे उस समय कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे, जिसका खुलासा बाद में हुआ।

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