PATNA : भारतीय सिनेमा में गानों को लेकर जो मुकाम लता मंगेशकर ने हासिल किया। वहीँ मुकाम लोक गायिकी को लेकर बिहार की शारदा सिन्हा ने हासिल किया है। यहीं वजह है की दोनों को स्वर कोकिला के नाम दिया गया। भारत सरकार ने दोनों गायिकाओं को उत्कृष्ट कार्यों को देश के नागरिक सम्मान से सम्मानित किया। लता मंगेशकर को भारत रत्न, जबकि शारदा सिन्हा को पद्म श्री और पद्म विभूषण सम्मानित किया गया। उनकी गायिकी के लोग इस कदर दीवाने हैं की वे मंत्रमुग्ध होकर उनके गानों को सुनते है।
कहा जाता है की लता मंगेशकर के मुख में साक्षात् सरस्वती का वास था। जबकि शारदा सिन्हा को छठी माई के बेटी कहा जाता है। हालाँकि यह संयोग है की सरस्वती के बेटी कही जानेवाली लता मंगेशकर का निधन जहाँ 2022 में सरस्वती पूजा के दिन हो गया था। वहीं यह संयोग है की छठ माइ के बेटी के रूप में जाने जानेवाली शारदा सिन्हा ने छठ पूजा में ही दुनिया को अलविदा कह दिया।
बता दें की लता मंगेशकर का फ़िल्मी संगीत का करियर आधी सदी से भी ज़्यादा लंबा रहा। जिसमें उन्होंने 36 भारतीय भाषाओं में 30 हज़ार से ज़्यादा गाने गाए। लता मंगेशकर ने अपना पहला हिंदी फ़िल्मी गाना 1949 में आई फ़िल्म 'महल' के लिए गाया था। इस फ़िल्म में उनकी गायकी की काफ़ी तारीफ़ हुई थी। फ़िल्म महल में उनके गाने को मशहूर संगीतकारों ने नोटिस किया और उन्हें मौक़े मिलने लगे। इसके बाद अगले चार दशकों तक लता मंगेशकर ने हिंदी फ़िल्मों में हज़ारों गाने गाए।
बात शारदा सिन्हा की करे तो बिहार में छठ और शारदा सिन्हा का अन्योनाश्रय सम्बन्ध है। छठ एक महापर्व है। इसे शारदा सिन्हा के गीतों ने देश-दुनिया में और लोकप्रिय बना दिया है। पिछले तीन दशक में बिहार-झारखंड से लेकर देश में बहुत बदलाव हुए। त्योहार मनाने के तरीके भी बदले। इस दौरान छठ पूजा का विस्तार गांव से लेकर शहर तक, न्यूयॉर्क और लंदन जैसे दुनिया के बड़े शहरों तक हो गया है। लेकिन छठ पर आज भी वही शारदा सिन्हा के गीत बजते सुनाई देते हैं। शारदा सिन्हा के छठ गीतों से लोग भाव-विभोर हो जाते हैं, इसमें पवित्रता और परंपरा का समागम होता है।