Bihar By-Poll Election 2024: बिहार के उपचुनाव 2023 में चार विधानसभा सीटें – तरारी, रामगढ़, इमामगंज और बेलागंज – विशेष रूप से ध्यान का केंद्र बनी हुई हैं। इनमें से बेलागंज सीट सबसे ज्यादा चर्चा में है। 13 नवंबर को होने वाले चुनाव में इस सीट पर नीतीश कुमार की जेडीयू और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के बीच सीधा मुकाबला है। इस उपचुनाव का परिणाम बिहार की राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। आइए, समझते हैं कि ग्राउंड रिपोर्ट के जरिए की क्यों बेलागंज सीट इतनी महत्वपूर्ण है और कैसे यह बिहार की राजनीति को नई दिशा दे सकती है।
बेलागंज पर आरजेडी और जेडीयू का आमना-सामना
बेलागंज सीट आरजेडी के गढ़ के रूप में जानी जाती है। यहां से सुरेन्द्र यादव, जो अब जहानाबाद से सांसद हैं, आठ बार विधायक रह चुके हैं। उनके सांसद बनने के बाद यह सीट खाली हुई और अब उनके बेटे विश्वनाथ यादव आरजेडी के प्रत्याशी हैं। वहीं, जेडीयू ने इस सीट से बाहुबली बिंदी यादव की पत्नी और दो बार की एमएलसी मनोरमा देवी को उम्मीदवार बनाया है। यह मुकाबला इसलिए भी खास है क्योंकि नीतीश कुमार ने आरजेडी के इस गढ़ को तोड़ने की रणनीति अपनाई है।
चुनाव प्रचार में लालू प्रसाद यादव की सक्रियता
चुनाव प्रचार के अंतिम दिन आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने बेलागंज का दौरा किया। इससे पहले उनके बेटे तेजस्वी यादव यहां प्रचार की बागडोर संभाल रहे थे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लालू प्रसाद का बेलागंज पहुंचना एक स्पष्ट संकेत है कि आरजेडी इस सीट को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती।
लालू प्रसाद के प्रचार में उतरने से बेलागंज सीट पर आरजेडी के पारंपरिक 'MY' (मुस्लिम-यादव) समीकरण को बनाए रखने की कोशिश हो रही है। वहीं दूसरी ओर, जेडीयू की ओर से जीतन राम मांझी और अन्य नेताओं ने मनोरमा देवी के समर्थन में चुनाव प्रचार किया है।
बेलागंज के जातीय समीकरण और वोट बैंक की स्थिति
बेलागंज का जातीय समीकरण भी इस चुनाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस सीट पर यादव समुदाय 19% और मुस्लिम समुदाय 17% के साथ एक मजबूत वोट बैंक बनाते हैं। राजद का MY समीकरण इन्हीं समुदायों पर आधारित है। हालांकि, जनसुराज के प्रशांत किशोर ने भी यहां मो. अमजद को उम्मीदवार के रूप में उतारकर मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने का प्रयास किया है।
इसके अतिरिक्त, बेलागंज में वैश्य, बनिया, भूमिहार और अन्य सवर्ण समुदायों का भी अच्छा खासा वोट बैंक है, जो कि जेडीयू के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। मनोरमा देवी का समर्थन सवर्णों में भूमिहारों और वैश्य समुदायों के बीच है, जो कि नीतीश कुमार की इस सीट पर जीत की संभावना को बढ़ा सकता है।
क्या उपचुनाव के नतीजे बिहार की राजनीति का भविष्य तय करेंगे?
बेलागंज उपचुनाव का नतीजा आने वाले 2025 विधानसभा चुनाव के लिए अहम हो सकता है। यदि जेडीयू इस सीट पर जीत दर्ज करती है, तो यह गया जिले की राजनीति में उसकी पहली उपस्थिति होगी और राजद के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। वहीं दूसरी ओर, यदि आरजेडी इस सीट पर जीतती है तो इससे संकेत मिलेगा कि लालू प्रसाद का MY समीकरण अब भी मज़बूत है। अगर जेडीयू और भाजपा गठबंधन इस सीट पर हार का सामना करता है, तो एनडीए 2025 के विधानसभा चुनाव की रणनीति पर नए सिरे से विचार कर सकती है।
नक्सलवाद, कानून व्यवस्था और विवादों में मनोरमा देवी
मनोरमा देवी का राजनीतिक करियर भी काफी विवादों में रहा है। 2016 में शराबबंदी के बावजूद उनके घर से शराब बरामद होने पर उन्हें जेडीयू से निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद उनके बेटे रॉकी यादव का रोडरेज केस भी चर्चा में रहा। साथ ही, मनोरमा देवी के घर पर नक्सलियों से संबंध के शक में NIA की छापेमारी भी हुई थी। इन विवादों के बावजूद जेडीयू ने उन्हें प्रत्याशी बनाया है, जिससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या मनोरमा देवी जनता का विश्वास जीतने में कामयाब होंगी?