28 अक्टूबर 2024, सोमवार को गोवत्स द्वादशी का पावन पर्व मनाया जाएगा। कार्तिक मास की द्वादशी तिथि को विशेष रूप से गोवत्स द्वादशी के रूप में जाना जाता है, जो गाय और बछड़े की पूजा का पर्व है। इस दिन हिंदू धर्म में दूध देने वाली गाय को उसके बछड़े के साथ स्नान कराकर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। गोवत्स द्वादशी का उद्देश्य गौ माता के प्रति श्रद्धा प्रकट करना और उनकी महत्ता को स्वीकार करना है। इस पवित्र दिन पर गाय की पूजा करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गोवत्स द्वादशी के दिन गाय को उसके बछड़े सहित पूजने से संतान सुख प्राप्त होता है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, जो अपने बच्चों के दीर्घायु और कल्याण के लिए गाय और बछड़े की आराधना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गायों को पूजने से पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। यह पर्व समुद्र मंथन की घटना से जुड़ा हुआ माना जाता है, जब क्षीरसागर से देवी कामधेनु का प्राकट्य हुआ था। गोवत्स द्वादशी के दिन की गई पूजा से घर में शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
गाय और बछड़े की पूजा विधि
इस विशेष दिन गौ माता और उनके बछड़े की पूजा का विशेष महत्व है। पूजा विधि का आरंभ प्रातःकाल स्नान करके किया जाता है। इसके बाद गाय को भी स्नान कराया जाता है। गाय और बछड़े को फूलों की माला पहनाई जाती है, उनके सींगों पर आभूषण सजाए जाते हैं और चंदन का तिलक लगाया जाता है। तत्पश्चात तांबे के पात्र में सुगंधित जल, अक्षत, पुष्प, तिल और जल का मिश्रण बनाकर गाय के चरणों का इस मंत्र से अभिषेक किया जाता है: "क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते। सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नमः॥" इसका अर्थ है कि गौ माता, जो क्षीरसागर से उत्पन्न हुई हैं और सभी देवताओं द्वारा पूजनीय हैं, इस अर्ध्य को स्वीकार करें। इसके बाद गौ माता को उड़द के बड़े खिलाए जाते हैं और निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है: "सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता। सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस॥ ततः सर्वमये देवि मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरू नन्दिनी॥" इस मंत्र का अर्थ है कि हे जगत् माता सुरभि, हे स्वर्ग
पूजा के बाद करें आरती और आशीर्वाद प्राप्त करें
गाय और बछड़े की पूजा के बाद रात्रि में इष्ट देव, ब्राह्मण, गौ माता, तथा परिवार के वृद्धजनों की आरती उतारनी चाहिए। यह परंपरा इस बात का प्रतीक है कि समाज के सभी वर्गों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव होना चाहिए। इस आरती के माध्यम से आशीर्वाद प्राप्त होता है और परिवार में सुख-शांति का संचार होता है। गोवत्स द्वादशी का पर्व विशेष रूप से संतान और परिवार की सुरक्षा के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान के दीर्घायु, स्वास्थ्य, और कल्याण के लिए व्रत रखती हैं और विशेष पूजा-अर्चना करती हैं। गाय को अपने परिवार का एक अभिन्न हिस्सा मानते हुए उन्हें भोजन कराना, आशीर्वाद लेना, और उन्हें संतान सुख का प्रतीक माना जाता है।
गोवत्स द्वादशी का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
गाय को माता का स्वरूप मानते हुए उसकी पूजा करना भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। इस दिन गायों की विशेष देखभाल की जाती है और उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। गोवत्स द्वादशी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी संतुलन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। गौपालन और गोसेवा भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से प्रतिष्ठित रहे हैं, और यह पर्व हमें इस परंपरा की महत्ता का स्मरण कराता है। गोवत्स द्वादशी पर गाय और बछड़े की पूजा कर उनके प्रति आभार व्यक्त करें और अपने परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना करें। इस दिन की गई पूजा और व्रत से परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस पावन पर्व पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करें और अपने जीवन को समृद्ध और खुशहाल बनाएं