डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी मानसिक समस्याओं के उपचार में अब एक नई उम्मीद की किरण दिखाई दी है। हाल ही में एक शोध में यह बात सामने आई है कि आंत की कोशिकाओं को टारगेट करने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाएं इन समस्याओं के इलाज में न केवल कारगर हैं, बल्कि पाचन तंत्र और व्यवहार संबंधी दुष्प्रभावों को भी कम कर सकती हैं।
कैसे काम करती हैं ये दवाएं?
शोधकर्ताओं के अनुसार, यह दवाएं आंत में सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाकर मानसिक विकारों को कम करती हैं। सेरोटोनिन एक महत्वपूर्ण न्यूरोट्रांसमीटर है जो भावनाओं और मानसिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह दवाएं आंत और मस्तिष्क के बीच के संचार को प्रभावित कर मनोदशा में सुधार करती हैं।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी वैगेलोस के क्लिनिकल न्यूरोबायोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर मार्क एन्सॉर्ग ने बताया, "सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाने वाली कई पारंपरिक एंटीडिप्रेसेंट दवाएं, जैसे प्रोजैक और जोलॉफ्ट, कई बार साइड इफेक्ट्स का कारण बनती हैं। लेकिन अगर दवाएं केवल आंत की कोशिकाओं को टारगेट करें तो न केवल मानसिक समस्याओं का समाधान होगा, बल्कि गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याओं से भी बचा जा सकेगा।"
गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षित समाधान
शोध में यह भी पाया गया कि ये दवाएं गर्भवती महिलाओं के लिए भी सुरक्षित हैं। डिप्रेशन का इलाज गर्भावस्था के दौरान न किया जाए तो यह मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। लेकिन आंत को टारगेट करने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाओं से मां और बच्चे दोनों पर किसी तरह का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता।
चूहों पर अध्ययन ने दिए सकारात्मक परिणाम
शोधकर्ताओं ने चूहों पर किए गए परीक्षण में पाया कि आंतों में सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाने से उनके एंग्जायटी और डिप्रेशन से संबंधित व्यवहार में सुधार हुआ। इस परिणाम ने आंतों को टारगेट करने वाली दवाओं के जरिए मानसिक विकारों के इलाज में नई संभावनाएं पैदा की हैं।
भविष्य की संभावनाएं
इस शोध से यह साफ हो गया है कि आधुनिक विज्ञान आंत-मस्तिष्क संबंध को समझकर मानसिक समस्याओं के लिए नए और सुरक्षित समाधान खोजने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इस थेरपी के व्यापक उपयोग से मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है।