Bihar News: बेटे के इंतज़ार में थमी मां की सांस, तीन दिन से घर के आंगन में पड़ी है लाश, कोर्ट के आदेश के बाद भी नहीं जेल से नहीं रिहा हुआ बेटा

गांव के लोग कहते हैं कि परिवार की बेबसी ने पूरे माहौल को ग़मगीन और भारी बना दिया है। बेटा सुधाकर पहले ही दुनिया छोड़ गया, और अब मधुकर की गैरमौजूदगी ने मां की विदाई को अधूरा कर दिया। परिजन कोर्ट के आदेश की राह देख रहे हैं।...

khagaria Mother Body Lies in Courtyard for 3 Days
बेटे के इंतजार में तीन दिन से घर के आंगन में पड़ी है मां की लाश- फोटो : X

Bihar News:  75 वर्षीय उषा देवी की करंट लगने से 17 सितंबर को मौत हो गई। पति अनंत राय पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे। जुलाई में छोटे बेटे सुधाकर कुमार की नदी में डूबने से मौत हो गई, और बड़ा बेटा मधुकर कुमार इस वक्त जेल में बंद है। ऐसे में मां की चिता बेटे की गैरहाज़िरी में थमी हुई है।बिहार के खगड़िया जिले के मथुरापुर अकहा गांव की घटना है।

हिंदू धर्म में यह गहरी मान्यता है कि मां के अंतिम संस्कार की अग्नि पुत्र के हाथों से ही होनी चाहिए।उषा देवी का पार्थिव शरीर गांव के आंगन में तीन दिनों से रखा हुआ है। बेटा जेल में है, और मां की आत्मा मोक्ष की राह में ठहरी हुई प्रतीत होती है।

गांव के लोग कहते हैं कि परिवार की बेबसी ने पूरे माहौल को ग़मगीन और भारी बना दिया है। बेटा सुधाकर पहले ही दुनिया छोड़ गया, और अब मधुकर की गैरमौजूदगी ने मां की विदाई को अधूरा कर दिया। परिजन कोर्ट के आदेश की राह देख रहे हैं।

ग्रामीणों और परिजनों ने मिलकर कोर्ट से गुहार लगाई है कि मधुकर कुमार को पैरोल पर रिहा किया जाए ताकि वह अपनी मां की चिता को मुखाग्नि दे सके। लेकिन कागजी प्रक्रिया की धीमी रफ्तार ने इस इंतज़ार को और लंबा कर दिया है। तीन दिन से गांव की आंखें दरवाज़े पर टिकी हैं कि कब जेल से मधुकर आएगा और मां की आत्मा को शांति मिलेगी।

गांव के पड़ोसी राहुल राज ने आंसुओं भरी आवाज़ में कहा, “मां की देह सामने पड़ी है, पर बेटा मौजूद नहीं। इससे बड़ा दुख और क्या हो सकता है?” खजरैठा पंचायत की मुखिया अनुपमा कुमारी ने जिला प्रशासन और न्यायालय से तुरंत संज्ञान लेने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील मामला है।

गांव के लोग बताते हैं कि हर गुजरते पल के साथ परिवार का दर्द और गहरा होता जा रहा है। मां की विदाई टल रही है और परिजन अश्रुपूर्ण आंखों से न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं।अब पूरा गांव और परिवार कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा कर रहा है।  यह इंतज़ार न केवल एक बेटे का है, बल्कि एक मां की आत्मा की मुक्ति का सवाल भी है।