Bihar News: ट्रेन रुकती है, पर सांसें थम जाती हैं, जानिए बिहार के 'भूतिया स्टेशन के बारे में , ट्रैक के किनारे डर, दीवारों पर कहानियां और प्लेटफॉर्म पर आखिर क्यों रहा है सन्नाटा

यहां ट्रेन तो हर रोज रुकती है, लेकिन लोग वहां उतरने से डरते हैं? जहां सवारी नहीं, सन्नाटा इंतजार करता है।...

भरतखंड हॉल्ट
बिहार का 'भूतिया स्टेशन"- फोटो : reporter

Bihar News: कभी सोचा है कि एक ऐसा रेलवे स्टेशन भी हो सकता है, जहां ट्रेन तो हर रोज रुकती है, लेकिन लोग वहां उतरने से डरते हैं? जहां सवारी नहीं, सन्नाटा इंतजार करता है। जहां पटरी के आसपास जंगल नहीं, खामोशियाँ सरसराती हैं। यह कोई कल्पना नहीं, बिहार के खगड़िया जिले में स्थित भरतखंड हॉल्ट की सच्ची कहानी है  जिसे अब लोग "हॉन्टेड हॉल्ट" के नाम से जानने लगे हैं।

1999 में रामविलास पासवान के रेलमंत्री रहते हुए इस हॉल्ट की नींव रखी गई थी। उद्घाटन में विधायक ब्रह्मदेव मंडल और डीआरएम यूएन मांझी मौजूद थे। भरतखंड, पुनौर, कैरिया, खजरैठा जैसे दर्जनों गांवों को जोड़ने वाला यह हॉल्ट आज अपनी उपेक्षा और वीरानी की शिकार हो चुका है।

यहां बिजली नहीं, शौचालय नहीं, पीने का पानी नहीं, और न ही एक अदद यात्री शेड।सड़क मार्ग की हालत ऐसी है कि रास्ता जंगल से होकर गुजरता है  न दिन में भरोसा, न रात में हिम्मत।और वाकई, जब आप इस हॉल्ट पर कदम रखते हैं तो महसूस होता है जैसे किसी भूले-बिसरे फिल्म के सेट में आ गए हों  कोई गार्ड नहीं, कोई सायरन नहीं, बस घास, झाड़ियां, और प्लेटफॉर्म पर पसरा मौन का साम्राज्य।

स्टेशन मास्टर हिमांशु कुमार खुद मानते हैं कि "मैं टिकट बिहपुर से खरीदकर लाता हूं, क्योंकि यहां काउंटर जैसी कोई व्यवस्था ही नहीं।""अब रोज का राजस्व 500-1000 रुपये के बीच रह गया है, पहले इससे दोगुना होता था।"

भरतखंड हॉल्ट की बदहाली सिर्फ एक स्टेशन की कहानी नहीं, ये है व्यवस्था की निष्क्रियता और विकास के खोखले वादों की गवाही।इस स्टेशन पर ना लाइट है, ना CCTV,ना टिकट काउंटर, ना सुरक्षा,और ना ही इंसानी आवाजें, सिर्फ अफवाहें।लोग कहते हैं कि यहां ट्रेनें रुकती हैं, पर यात्रियों की हिम्मत नहीं।यह हॉल्ट नहीं, भूले-बिसरे सपनों का क़ब्रिस्तान है।