सूर्य देव के राशि परिवर्तन को संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इसका सनातन धर्म में अत्यधिक महत्व है. जब सूर्य देव तुला राशि में प्रवेश करते हैं, तब तुला संक्रांति का विशेष पर्व मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों जैसे गंगा में स्नान-ध्यान कर पूजा, जप और तपस्या में लीन हो जाते हैं। इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। कहा जाता है कि सूर्य देव की उपासना से व्यक्ति को स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है, साथ ही करियर में भी नए अवसर खुलते हैं।
17 अक्टूबर को सुबह 07:42 बजे सूर्य देव कन्या राशि से तुला राशि में गोचर करेंगे। यह गोचर 15 नवंबर तक चलेगा। इस दौरान, 23 अक्टूबर को स्वाति नक्षत्र और 06 नवंबर को विशाखा नक्षत्र में सूर्य देव का गोचर रहेगा। इन तिथियों में किया गया जप, ध्यान और दान अक्षय फलदायी होता है, अर्थात् इसका पुण्य कभी नष्ट नहीं होता।
वैदिक पंचांग के अनुसार, तुला संक्रांति का पुण्यकाल 17 अक्टूबर को सुबह 06:23 बजे से शुरू होकर 11:41 बजे तक रहेगा। विशेष रूप से, महापुण्यकाल सुबह 06:23 बजे से लेकर 09:47 बजे तक है। इस दौरान साधक स्नान-ध्यान कर सूर्य देव की आराधना करें और दान-पुण्य का लाभ उठाएं। तुला संक्रांति का सबसे शुभ क्षण सुबह 07:52 बजे है, जो साधकों के लिए विशेष फलदायी रहेगा।
इस वर्ष तुला संक्रांति पर कई अद्भुत योग बन रहे हैं। पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का प्रभाव रहेगा, जिससे साधकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। इसके अलावा हर्षण योग और शिववास योग भी बन रहे हैं, जो जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता के मार्ग खोलेंगे। सूर्य देव की उपासना इन योगों के दौरान करने से करियर में अद्वितीय उन्नति और व्यक्तिगत जीवन में शांति प्राप्त होती है।