Bihar University Exam: “इस बार पास नहीं हुआ तो शादी रुक जाएगी”...परीक्षा हॉल से इम्तिहान-ए-ज़िंदगी तक का सफर, छात्रों के साथ छात्राओं ने कॉपियों में उतरी मोहब्बत, शादी और रहम की दरख़्वास्त, पढ़ लीजिए आज के विद्यार्थियों के उत्तर, परेशान हो जाएंगे आप

Bihar University Exam: आजकल परीक्षा की कॉपियों में विद्यार्थी सिर्फ़ उत्तर ही नहीं लिखते, बल्कि अपनी मोहब्बत, शादी की अर्ज़ी और रहम की गुज़ारिश भी कर डालते हैं!

From Exam Hall to Life s Test Love Marriage
छात्रों के साथ छात्राओं ने कॉपियों में उतरी मोहब्बत, शादी और रहम की दरख़्वास्त- फोटो : social Media

Bihar University Exam: बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय की स्नातक सेमेस्टर–2 (सत्र 2024–28) की परीक्षा ने इस बार शिक्षा से ज़्यादा कष्ट की कहानी लिखी है। कॉपियों में सवाल कम और जज़्बात ज़्यादा उतर आए हैं। नतीजा यह कि परीक्षक कलम छोड़कर माथा पकड़ रहे हैं और तालीम की हालत पर अफसोस कर रहे हैं। यह इम्तिहान अब सिर्फ़ डिग्री का नहीं रहा, बल्कि सब्र, रहम और रिवायतों की कड़ी परीक्षा बन गया है।

किसी कॉपी में फिजिक्स के सवाल पर खेल-कूद के फ़ायदे गिनाए गए हैं मानो न्यूटन नहीं, नेहरू स्टेडियम से सवाल आया हो। कहीं केमिस्ट्री और हिस्ट्री में रिएक्शन और रिवोल्यूशन की जगह निजी इमोशन की केमिस्ट्री लिखी गई है। लगभग पाँच लाख कॉपियों की जांच होनी है, मगर लगता है यह शिक्षा की नहीं, हारानी की गणना है।

कॉपियों में कुछ पन्ने तो सीधे दिल की अदालत से आए हैं। एक छात्र ने लिखा कि “इस बार पास नहीं हुआ तो शादी रुक जाएगी।” दलील भी मुकम्मल थी  उम्र निकलती जा रही है, पहले भी प्रमोट हो चुका हूँ, लड़की वाले मुहूर्त निकालने बैठे हैं, बस रिज़ल्ट का इंतज़ार है। यानी सवाल का जवाब नहीं, क़िस्मत का काग़ज़।

हिंदी की वैकल्पिक श्रेणी में साहित्य भी हैरान है। ‘पद्मावत’ के लेखक मलिक मुहम्मद जायसी नहीं, एक छात्र के मुताबिक देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद हैं। साहित्य ने करवट बदली, इतिहास ने आँखें मल लीं। शिक्षकों का कहना है कि जिनका ऑनर्स हिंदी नहीं है और वैकल्पिक में हिंदी है, उनकी कॉपियों में ऐसी भूल-चूक ज़्यादा हैजैसे भाषा नहीं, किस्मत चुनी गई हो।

विज्ञान के एक छात्र ने तो उत्तर की जगह पूरा प्रेम-पत्र लिख दिया-क़समें, वादे और शादी के बाद जीने-मरने का एलान। परीक्षक हक्के-बक्के यह प्रयोगशाला नहीं, दिल की डायरी थी। कुछ ने पास होने पर गुरु-दक्षिणा में मिठाई का वादा किया, तो कुछ ने बीमारी का हवाला देकर आवेदन ही लिख मारा कि हालात देखिए, रहम कीजिए।

यह सब देखकर लगता है कि इम्तिहान हॉल अब  शिक्षा का नहीं, अनुभव का मैदान बन गया है। सवाल किताबों से थे, जवाब ज़िंदगी से आ गए। मगर ज्ञान के बिना इम्तिहान पास हो भी जाए, ज़िंदगी का इम्तिहान कौन पास कराएगा?