Bihar Politics: बिहार की राजनीति में नया फैक्टर? नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार पर उठे सवाल
Bihar Politics: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के आने की अटकलें तेज़ हैं। क्या वे परिवारवाद का आरोप झेल पाएंगे और तेजस्वी-चिराग जैसी युवा राजनीति को चुनौती देंगे?

Bihar Politics: नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक जीवन का बड़ा हिस्सा परिवारवाद के खिलाफ बिताया है। लेकिन अब जब जदयू के कई वरिष्ठ नेता उनके बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लाने की वकालत कर रहे हैं, तो सवाल उठना लाज़मी है।अगर नीतीश कुमार इस पहल को स्वीकार करते हैं, तो वे उसी परिवारवाद के समर्थक नज़र आएंगे, जिसके विरोध में उन्होंने दशकों तक राजनीति की क्या नीतीश कुमार अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम पड़ाव में इस छवि संकट को झेल पाएंगे?
धार्मिक और सामाजिक झुकाव वाले निशांत
मीडिया रिपोर्ट्स में निशांत कुमार को अब तक धार्मिक रुझान वाला व्यक्ति बताया गया है।वे धार्मिक कथाएं, भजन और प्रार्थनाएं सुनना पसंद करते हैं।सामाजिक कार्यक्रमों में उनकी मौजूदगी दिखती रही है, लेकिन राजनीतिक आयोजनों से वे दूरी बनाए रहे हैं।यहां सवाल उठता है कि अगर वे राजनीति में आते हैं तो जनता के सामने कौन सा चेहरा पेश करेंगे—एक धार्मिक-आध्यात्मिक झुकाव वाला या एक व्यावहारिक राजनेता?
क्या युवा नेतृत्व की रेस में शामिल होंगे निशांत?
बिहार की राजनीति इस समय पीढ़ियों के बदलाव के दौर से गुजर रही है।पुरानी पीढ़ी के नेता लालू यादव, नीतीश कुमार, शिवानंद तिवारी, जगदानंद सिंह जैसे नेता अब राजनीतिक अवसान की ओर बढ़ रहे हैं।नई पीढ़ी के नेता तेजस्वी यादव, तेजप्रताप यादव, चिराग पासवान पहले ही सक्रिय राजनीति में उतर चुके हैं।तेजस्वी उप मुख्यमंत्री बनकर और चिराग केंद्रीय मंत्री बनकर अपनी-अपनी राजनीतिक विरासत को संभाल रहे हैं। ऐसे में क्या नीतीश कुमार अपने समर्थकों के ज़रिए निशांत को युवा राजनीति की इस रेस में उतारना चाहेंगे?
दोनों हाथ में लड्डू नीतीश के समर्थकों की रणनीति
वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी का मानना है कि निशांत को राजनीति में लाने की कोशिश ज़्यादातर नीतीश कुमार के करीबी नेता ही कर रहे हैं।कभी वे बयानबाज़ी करते हैं, कभी पार्टी दफ्तर और चौक-चौराहों पर पोस्टर लगा देते हैं।उनका मकसद साफ है—नीतीश कुमार की नज़रों में वफ़ादार बने रहना।अगर निशांत राजनीति में आते हैं तो ये नेता दावा कर पाएंगे कि उन्होंने ही इस मुहिम को आगे बढ़ाया था।हालांकि, ज़मीनी स्तर पर कोई बड़ा आंदोलन या कार्यकर्ताओं की पहल दिखाई नहीं देती।
नीतीश कुमार की चुप्पी
अब तक नीतीश कुमार की तरफ से निशांत की राजनीति को लेकर कोई सीधा संकेत नहीं मिला है।न तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से समर्थन दिया है और न ही विरोध।ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नीतीश कुमार रणनीतिक चुप्पी साधे हुए हैं और सही समय का इंतज़ार कर रहे हैं?