Bihar Politics: खुद के स्मार्ट मूव में फंस गई भाजपा!जानें क्या किया ऐसा जिसकी वजह से मुसीबत से पड़ सकता है पाला

Bihar Politics: नीतीश कैबिनेट में भाजपा को गृह और उद्योग विभाग मिले हैं, लेकिन यह अवसर के साथ बड़ा जोखिम भी है। क्या बीजेपी इन चुनौतीपूर्ण विभागों को सफलतापूर्वक संभाल पाएगी?

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बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती!- फोटो : social media

Bihar Politics: बिहार में नीतीश कुमार के साथ बनी नई सरकार में भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से प्रमुख विभाग अपने हाथ में लिए हैं, वह उसकी नई राजनीतिक दिशा को साफ दिखाता है। पार्टी चाहती है कि सरकार में उसकी भूमिका केवल साझेदारी तक सीमित न रहे, बल्कि जनता के सामने एक सक्षम और अलग पहचान भी बने। इसी उद्देश्य से भाजपा ने गृह विभाग और उद्योग विभाग जैसे संवेदनशील मंत्रालय संभाले हैं। हालांकि इन दोनों विभागों में थोड़ा सा भी मिसमैनेजमेंट भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है।

सोची-समझी चाल, लेकिन जोखिम भी उतना ही बड़ा

भाजपा ने इस बार टीम में कई नए चेहरों को शामिल किया है। पार्टी की कोशिश है कि आने वाले समय में बिहार में उसका स्वतंत्र नेतृत्व तैयार हो और उसकी प्रशासनिक क्षमता भी जनता के सामने सिद्ध हो। लेकिन जिन विभागों से भाजपा अपनी परफॉर्मेंस दिखाना चाहती है, वे लंबे समय से Bihar की सबसे कठिन चुनौतियों से जुड़े रहे हैं। इसलिए यह कदम जितना अवसर है, उतना ही जोखिम भी।

उद्योग विभाग का भार और मोदी का वादा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में उद्योगों और निवेश को लेकर बड़े आश्वासन दिए हैं। भाजपा ने उद्योग विभाग अपने पास रखकर इस वादे को पूरा करने की जिम्मेदारी खुद ले ली है। लेकिन बिहार की औद्योगिक व्यवस्था जमीन, बिजली, सुरक्षा और संसाधन जैसी पुरानी दिक्कतों से घिरी हुई है। भूमि अधिग्रहण अब भी सबसे कठिन प्रक्रिया है, स्थिर बिजली सप्लाई अब भी बड़ी चुनौती बनी हुई है, और कुशल श्रमिकों की उभरती कमी उद्योगों को पीछे खींचती रही है। व्यवसायियों में सुरक्षा को लेकर डर अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है और कच्चे माल की ऊंची लागत भी निवेशकों को दूर रखती है। इन सभी समस्याओं का हल भाजपा की कार्यशैली पर निर्भर करेगा, नहीं तो यह विभाग उसकी विश्वसनीयता के लिए समस्या बन सकता है।

गृह विभाग—भाजपा की असली परीक्षा

बिहार में पहली बार गृह विभाग भाजपा को मिला है। इस मंत्रालय की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हाल के वर्षों में अपराध के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है और पुलिस की कार्यशैली कई बार सवालों के घेरे में आई है। बिहार की कानून व्यवस्था हमेशा से राजनीतिक और जातीय समीकरणों से जुड़ी रही है, इसलिए सख्त कार्रवाई करना आसान नहीं होता। उत्तर प्रदेश की तर्ज पर बुलडोज़र राजनीति यहाँ सीधे लागू नहीं हो सकती। इसके अलावा, सुशासन की छवि हमेशा नीतीश कुमार को मिलती रही है। अगर अपराध बढ़ा, तो पहला निशाना भाजपा पर आएगा, जबकि जेडीयू इससे दूरी बना सकती है।

सफलता मिली तो नायक, असफल हुई तो भारी नुकसान

भाजपा ने जोखिम उठाकर बड़े विभाग अपने पास रखे हैं। अगर वह इन विभागों को प्रभावी ढंग से चला लेती है, तो बिहार राजनीति में उसकी भूमिका और प्रभाव कई गुना बढ़ जाएगा। इससे 2029 और 2030 की राजनीति तक प्रभावित होगी। लेकिन अगर उद्योग में प्रगति न हो पाई या सुरक्षा व्यवस्था बिगड़ी, तो पूरा राजनीतिक नुकसान भाजपा को उठाना पड़ेगा। विपक्ष को भी मजबूत मुद्दा मिल जाएगा और नीतीश स्वयं इससे अलग खड़े रह सकते हैं।