Ashrafi Lal Singh murder: बस संचालक अशर्फी लाल सिंह की हत्या! जमीन विवाद, सुपारी किलिंग और भीड़ की हिंसा का दर्दनाक सच

Ashrafi Lal Singh murder: जमीन विवाद के चलते बस संचालक अशर्फी लाल सिंह की सुपारी देकर हत्या कराई गई। घटना के बाद ग्रामीणों ने भाग रहे दोनों शूटरों को पकड़कर पीट-पीटकर मार दिया।

Ashrafi Lal Singh murder
अशर्फी लाल सिंह मर्डर केस- फोटो : social media

Ashrafi Lal Singh murder: अशर्फी लाल सिंह की मौत किसी अचानक भड़की बहस का नतीजा नहीं थी, बल्कि यह कई महीनों से धीरे-धीरे बढ़ रहे तनाव और जमीन के अधिकार को लेकर चल रही तीखी खींचतान का अंतिम परिणाम साबित हुई। परिवार के अनुसार लगभग बीस करोड़ कीमत वाली इस विवादित जमीन को लेकर नागेश्वर सिंह के परिवार से उनका संघर्ष बहुत पुराना था। अदालत में लंबे समय तक चली सुनवाई के बाद हाल ही में फैसला अशर्फी लाल के पक्ष में आ गया और इसी निर्णय के बाद उन्होंने जमीन पर चारदीवारी करवा दी। यह कदम पूरे विवाद के माहौल को और ज्यादा जलता हुआ बना गया।

परिवार का कहना है कि जब मामला निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया था. तभी दूसरी तरफ की रंजिश मौत की साजिश में बदल गई। नागेश्वर सिंह के निधन के बाद मामला उनके दामाद के हाथ में चला गया और दोनों परिवारों के बीच तनाव धीरे-धीरे और ज्यादा बढ़ता गया। चार दिन पहले सीमांकन की दीवार खड़ी होना इस संघर्ष की आखिरी चिंगारी साबित हुई। जिस तरह शूटर पूरी तैयारी के साथ आए थे. चेहरा छुपाने वाले हेलमेट, टेप लगी नंबर प्लेट और स्पष्ट तौर पर पेशेवर अंदाज़. उससे साफ दिखता है कि यह हमला अचानक नहीं, बल्कि पूरी छानबीन करके की गई सुपारी किलिंग थी। गांव वालों के अनुसार अपराधियों को मौके और समय की जानकारी बिल्कुल सटीक थी, जिससे यह साबित होता है कि प्लान काफी पहले से तैयार था।

अशर्फी लाल सिंह मर्डर केस
घटना वाले दिन दोपहर का समय था। अशर्फी लाल सिंह अपने घर के बाहर रोज़ की तरह बैठे हुए थे और आसपास परिवार के सदस्य मौजूद थे। अपराधियों ने इसी रुटीन का फायदा उठाया और वही वक्त चुना जब गांव के ज्यादातर लोग अपने-अपने घरों के सामने बैठे रहते हैं। दोनों शूटर रामकृष्ण नगर रास्ते से गांव में घुसे और पहचान छुपाने के लिए बाइक की नंबर प्लेट पर टेप लगा रखा था। फुल फेस हेलमेट से चेहरे भी पूरी तरह ढके हुए थे।

जैसे ही शूटर पास पहुंचकर फायरिंग करने लगे, घर के भीतर और आसपास के लोगों में अफरा-तफरी मच गई। दोनों अपराधी भागने की कोशिश में गलत रास्ते में मुड़ गए। शायद उन्हें यह खबर नहीं थी कि गांव से बाहर निकलने का दूसरा कच्चा रास्ता भी है। घबराहट में उन्होंने गलत दिशा ले ली और यही उनकी सबसे बड़ी गलती सिद्ध हुई। गांव के कई युवक तुरंत पीछे दौड़े, भीड़ जमा होने लगी और कुछ ही पलों में लोगों ने उनकी बाइक को रोक लिया।

डोमानचक मार्ग के पास दर्जनों ग्रामीणों ने दोनों को घेर लिया। भीड़ गुस्से में इतनी भड़क चुकी थी कि अपराधियों के बचने की कोई संभावना ही नहीं रही। लोगों ने उन्हें बाइक से गिराकर हेलमेट उतारा और लाठी-डंडों, ईंटों व धारदार हथियारों से हमला कर दिया। पुलिस पहुँचने तक दोनों ढेर हो चुके थे। मौके से सिर्फ कारतूस मिले, जबकि हथियार कोई उठा ले गया। यह पूरा घटनाक्रम दिखाता है कि कई बार बड़े प्लान के साथ आए अपराधी भीड़ की लहर में खुद फंस जाते हैं और जान से हाथ धो बैठते हैं।

अशर्फी लाल सिंह फैमिली ट्रैजेडी

अशर्फी लाल सिंह की मौत ने उनके परिवार को दुगुने शोक में डुबा दिया। अभी नौ महीने पहले उनके छोटे बेटे देवेंद्र की बीमारी से मृत्यु हुई थी। घर वाले उस दुख से पूरी तरह उबर भी नहीं पाए थे कि पिता की हत्या ने पूरे परिवार को फिर से गहरे आघात में डाल दिया। बड़े बेटे रविंद्र के लिए यह दर्द सबसे अधिक था—पहले छोटे भाई का जाना और अब पिता की अचानक हत्या ने उसे तोड़कर रख दिया। घटना की जानकारी मिलते ही वह कई बार बेहोश हो गया और रिश्तेदार उसे संभालने में जुटे रहे।

घर के आंगन में रोने की आवाजें गूंजती रहीं। छोटे पोता-पोती दादा को पुकारते हुए पूछ रहे थे कि “दादा को क्यों गोली मार दी?” उनकी मासूम चीखें वहां मौजूद हर व्यक्ति को अंदर तक हिला रही थीं। बहुओं ने साफ कहा कि जमीन की लड़ाई ने ही घर के मुखिया की जिंदगी छीन ली। गांव में इतना गहरा शोक शायद ही किसी ने पहले देखा हो। अशर्फी लाल गांव में शांत, सहयोगी और सम्मानित व्यक्ति माने जाते थे। लोगों को उनके जाने से ऐसा लगा जैसे गांव का एक सहारा अचानक खत्म हो गया हो।

भीड़ की हिंसा और पुलिस की चुनौती
यह मामला हत्या तक ही सीमित नहीं रहा। अपराधियों की मौत ने कानून-व्यवस्था पर भी नई बहस छेड़ दी है। ग्रामीणों ने जिस तरह दोनों शूटरों को पीट-पीटकर मार डाला, उससे पुलिस अब दो पहलुओं पर एक साथ जांच कर रही है. पहला, असल में सुपारी किसने दी थी और इस पूरी योजना का मास्टरमाइंड कौन है। दूसरा, भीड़ ने हत्या किस परिस्थिति में की और कानून को हाथ में लेने की स्थिति कैसे बनी।

पुलिस का कहना है कि अपराधी पेशेवर लगते हैं और उनकी पहचान निकालना कठिन है। टेप लगी नंबर प्लेट, ब्रांडेड कपड़े, बंद हेलमेट और गायब हुआ हथियार इस बात की पुष्टि करते हैं कि योजना बहुत गहरी थी। हालांकि ग्रामीणों ने अपराधियों को पकड़कर मार दिया, लेकिन इससे यह सवाल और भी बड़ा हो गया कि असल साजिशकर्ता कौन है और हत्या की पृष्ठभूमि किसने तैयार की।

भीड़ की तरफ हत्या पर भी कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। कानून साफ कहता है कि सजा अदालत देती है, भीड़ नहीं। लेकिन गांव वालों का कहना है कि उन्होंने अपराधियों को अशर्फी लाल को गोली मारते देखा और उसी सदमे व गुस्से में सबकुछ अनियंत्रित हो गया। मौके से हथियार का गायब होना पुलिस के लिए दूसरी बड़ी चुनौती बन गया है।