Bihar Congress: बिहार की रणभूमि में कांग्रेस के पस्त होने के बाद भयानक भूचाल,अब आत्मनिरीक्षण नहीं, हक़ीक़त से रू-ब-रू होने का वक़्त

बिहार की यह हार सिर्फ एक चुनावी पराजय नहीं, बल्कि एक संदेश, एक चेतावनी, और एक आईना है कि कांग्रेस को अब खुद को नए सिरे से गढ़ना होगा...

Congress Shocked in Bihar Battlefield
बिहार की रणभूमि में कांग्रेस के पस्त होने के बाद भयानक भूचाल- फोटो : social Media

Bihar Congress:बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने कांग्रेस की सियासी ज़मीन को जैसे झकझोर कर रख दिया है। महज़ 6 सीटों पर सिमट आई पार्टी न सिर्फ पराजय का स्वाद चख रही है, बल्कि इस नाकामी ने उसके भीतर गहरे असंतोष, आत्ममंथन और नेतृत्व की विफलताओं पर उठते सवालों को और भी तीखा कर दिया है। चुनावी अखाड़े में हार की यह पटकथा यूँ ही नहीं लिखी गई; यह वर्षों से चले आ रहे संगठनात्मक जड़त्व, रणनीतिक भूलों और सियासी हक़ीक़त से दूरी का नतीजा है।

वरिष्ठ नेता शशि थरूर की बातों में दर्द तो है, मगर चेतावनी भी। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ आत्मनिरीक्षण का समय नहीं, बल्कि यह देखने का वक़्त है कि कहाँ चूक हुई, किस मोर्चे पर संदेश कमजोर पड़ा और कहाँ संगठन बेदम साबित हुआ।थरूर का यह बयान कांग्रेस के भीतर पसरे उस धुँए की तरफ इशारा करता है जहाँ आग तो बहुत पहले लग चुकी थी, पर किसी ने उसकी तपिश महसूस करने की ज़हमत ही नहीं उठाई।

दूसरी ओर बिहार के पूर्व मंत्री शकील अहमद टटोलते हुए भी गहरी चोट कर जाते हैं। उन्होंने कहा कि टिकट बंटवारे को लेकर जो सवाल उठे, वित्तीय अनियमितताओं के जो आरोप लगेउनकी जांच ज़रूरी है। वरना पार्टी की हार सिर्फ शुरुआत होगी।उनकी यह टिप्पणी बताती है कि सियासी कुहासा महज़ चुनावी रणनीति में नहीं, बल्कि अंदरूनी तंत्र में भी गहरा पसरा है।

कांग्रेस नेता कृपानंद पाठक और पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार दोनों ही संगठन की जर्जर होती नसों पर उँगली रखते हैं। पाठक के शब्दों में शिकायतों की अनसुनी का ग़ुस्सा झलकता है, कृपानाथ पाठक ने कहा कि जिन सच्चाइयों को ऊपर तक पहुँचना चाहिए था, उन्हें दबा दिया गया। यह अनदेखी अब संकट बनकर सामने खड़ी है। निखिल कुमार की दृष्टि और भी स्पष्ट है , उन्होंने कहा कि बिना मज़बूत संगठन के चुनावी समर में उतरना मानो नंगी तलवार लेकर तूफ़ान में चल पड़ना है। नतीजे इसका प्रमाण हैं।

सबसे करारा प्रहार अहमद पटेल की बेटी मुमताज पटेल करते हुए कहती है कि अब आत्मनिरीक्षण नहीं, अब हक़ीक़त का सामना करना होगा। पार्टी की शक्ति कुछ लोगों के हाथों में सिमट गई है, जो ज़मीन की नब्ज़ से अनजान हैं, और बार-बार हार के बावजूद पुरस्कृत होते जा रहे हैं। उनकी यह टिप्पणी कांग्रेस की सियासत में गूँजते उस दर्द का निचोड़ है जो वर्षों से दबा हुआ थावफादार कार्यकर्ता पसीना बहाते रहें और फैसले बंद कमरों में वही लोग लें जिनका जमीनी सच्चाई से कोई वास्ता नहीं।

बिहार की यह हार सिर्फ एक चुनावी पराजय नहीं, बल्कि एक संदेश, एक चेतावनी, और एक आईना है कि कांग्रेस को अब खुद को नए सिरे से गढ़ना होगा, वरना इतिहास लिखने वाली यह पुरानी पार्टी खुद इतिहास बनकर रह जाएगी।