Bihar land acquisition: भूमि अधिग्रहण मुआवजा पाने के नियमों में सरकार ने किया बड़ा बदलाव, सच को मिलेगा उसका हक, फर्जी कागज नहीं, जान लीजिए नया कानून, नहीं तो...
Bihar land acquisition: यदि अधिग्रहण उपरांत भूमि स्वामी का निधन हो जाता है और उसके उत्तराधिकारियों को 50 लाख रुपये से अधिक की क्षतिपूर्ति राशि प्राप्त होनी है, तो अब यह केवल अंचलाधिकारी के प्रमाण से नहीं....

Bihar land acquisition:बिहार की धरती, जो अनगिनत स्मृतियों और स्वामित्व के दावों की साक्षी रही है, अब भूमि अधिग्रहण के मुआवज़े के वितरण में एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है। राज्य के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने ऐसे स्पष्ट, कठोर परंतु न्यायसंगत दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जो पारदर्शिता और उत्तराधिकार के सिद्धांतों को नई पहचान देते हैं।
बिहार में भूमि अधिग्रहण के बाद मिलने वाले मुआवज़े को लेकर भूचाल आ गया है! अब अंचलाधिकारी की 'चिट्ठी' नहीं, बल्कि कानूनी वारिस प्रमाण पत्र ही चलेगा! सरकार ने ₹50 लाख से ज़्यादा के मुआवज़े पर सख़्ती दिखाते हुए एक ऐतिहासिक फैसला लिया है, जिससे अतीत में होने वाले करोड़ों के घोटालों पर लगाम लगेगी।
अब तक, बड़े-बड़े मुआवज़े भी सिर्फ़ स्थानीय अधिकारियों की कृपा पर मिल जाते थे, लेकिन अब यह पुरानी चालबाज़ी ख़त्म! यह बदलाव सिर्फ़ काग़ज़ी नहीं, बल्कि मुआवज़े की प्रक्रिया में 'पवित्रता' और 'पारदर्शिता' लाने का ब्रह्मास्त्र है! अगर मुआवज़ा ₹50 लाख से कम भी है, तो भी अंचलाधिकारी को संतुष्ट करना होगा और न्यायिक रूप से वैध उत्तराधिकार प्रमाण पत्र देना अनिवार्य होगा।
इतना ही नहीं, सरकार ने इस प्रक्रिया को और भी पुख़्ता बनाने के लिए एक और घातक शर्त जोड़ी है: 'क्षतिपूर्ति बंध पत्र'! इसमें मुआवज़ा लेने वाले वारिसों को यह क़सम खानी होगी कि अगर भविष्य में कोई असली वारिस सामने आता है, तो वे पूरी या कुछ रकम वापस लौटाएंगे! यह सिर्फ़ एक काग़ज़ी कार्रवाई नहीं, बल्कि 'न्याय की आत्मा' की रक्षा का वचन है!
भूमि अधिग्रहण निदेशक कमलेश कुमार सिंह के शेखपुरा मामले में दिए गए निर्देशों ने इन नियमों की गंभीरता को और भी बढ़ा दिया है। अब यह साफ़ है कि राज्य सरकार किसी भी तरह की ढिलाई बर्दाश्त नहीं करेगी!
इन क्रांतिकारी बदलावों के पीछे सरकार का मकसद साफ़ है: धोखाधड़ी पर लगाम और वास्तविक हक़दार को उसका पैसा दिलाना! ख़ासकर उन मामलों में जहाँ मृतक भू-मालिक के कई वारिस होते हैं और रकम बड़ी होती है, यह नई प्रणाली न्याय की नई मिसाल बनेगी।
बहरहाल बिहार सरकार का यह कदम न केवल भूमि अधिग्रहण के क्षेत्र में एक नई कानूनी क्रांति लाएगा, बल्कि जनता के भरोसे को भी फिर से बहाल करेगा। यह एक ऐसी पहल है जहाँ संवेदना और क़ानून साथ-साथ चलते हैं, और इसी में छिपा है 'सच्चे हक़दार को उसका हक़ दिलाने' का वादा!
नए नियमों के आलोक में, यदि अधिग्रहण उपरांत भूमि स्वामी का निधन हो जाता है और उसके उत्तराधिकारियों को 50 लाख रुपये से अधिक की क्षतिपूर्ति राशि प्राप्त होनी है, तो अब यह केवल अंचलाधिकारी के प्रमाण से नहीं, बल्कि विधिक प्रक्रिया के तहत प्राप्त उत्तराधिकार प्रमाण पत्र से ही संभव होगा। अतीत में यह बड़ी धनराशियाँ भी स्थानीय प्रशासनिक स्तर पर प्रमाणित होकर निर्गत हो जाया करती थीं, परंतु अब इस पद्धति को पूर्ण विराम दे दिया गया है।
यह बदलाव मात्र एक औपचारिकता नहीं, बल्कि मुआवज़े की प्रक्रिया को कानूनी पवित्रता और पारदर्शिता प्रदान करने की दिशा में एक ठोस कदम है। यदि क्षतिपूर्ति राशि 50 लाख से कम हो, तब भी संबंधित उत्तराधिकारियों को आवश्यक प्रमाणों के साथ अंचलाधिकारी की संतुष्टि प्राप्त करनी होगी, और न्यायिक रूप से वैध उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा।