Hanuman Jayanti Special : बल, बुद्धि और विद्या के प्रतीक हैं हनुमान जी, गुणों को अपनाकर 'कौशलयुक्त' बन सकता है देश, सफल हो सकते हैं युवा, हनुमान जयंती पर पढ़िए विशेष रिपोर्ट

Hanuman Jayanti Special : रामभक्त हनुमान को बल, बुद्धि और विद्या का प्रतीक माना जाता है। उनके चारित्रिक गुणों को अपना कर देश जहाँ कौशल युक्त बन सकता है. वहीँ युवा बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकते हैं....पढ़िए आगे

Hanuman Jayanti Special : बल, बुद्धि और विद्या के प्रतीक हैं
हनुमान जयंती आज - फोटो : SOCIAL MEDIA

N4N DESK : रामभक्त हनुमान को महावीर, बजरंगबली, पवन पुत्र, अंजनेय समेत कई नामों से पुकारा जाता है. हनुमान त्याग और समर्पण के प्रतीक के तौर पर जाने जाते हैं। कहा जाता है की भगवान हनुमान को अमर होने का वरदान प्राप्त हैं। उनके चारित्रिक गुणों को थोड़ा सा भी उतारकर अपने जीवन को सफल किया जा सकता है। हमारे धर्मशास्त्रों में आत्मज्ञान की साधना के लिए तीन गुणों की अनिवार्यता बतायी गयी है- बल, बुद्धि और विद्या। एक की भी कमी हो तो साधना का उद्देश्य सफल नहीं हो सकता। पहली बात साधना के लिए बल जरूरी है, निर्बल व कायर व्यक्ति साधना का अधिकारी नहीं हो सकता। दूसरे साधक में बुद्धि और विचार शक्ति होनी चाहिए, इसके बिना साधक पात्रता विकसित नहीं कर पाता और तीसरे विद्या क्योंकि विद्यावान व्यक्ति ही आत्मज्ञान हासिल कर सकता है। महावीर हनुमान के जीवन में इन तीनों ही गुणों का अद्भुत समन्वय मिलता है। इन्हीं गुणों के बल पर जीवन की प्रत्येक कसौटी पर खरे उतरते हैं भक्त शिरोमणि हनुमान। रामकथा में हनुमान जी का चरित्र इतना प्रखर है कि उन्होंने राम के आदर्शों को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रुद्रांश श्री हनुमान ने इस धरती पर भगवान राम की सहायता के लिये अवतार लिया था। ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार महावीर हनुमान का जन्म 58 हजार 112 साल पहले त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सूर्योदय काल में माता अंजना के गर्भ से हुआ था। चूंकि भक्त शिरोमणि हनुमान जी का पूजन कलियुग के जाग्रत देवता के रूप में होता है, इसी कारण प्रति वर्ष चैत्र माह की पूर्णिमा को महावीर हनुमान का जयंती नहीं अपितु जन्मोत्सव मनाया जाता है। महावीर हनुमान का जीवन हमें यह शिक्षण देता है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति भक्त ही नहीं, वरन भगवान तक बन सकता है। बलवानों में भी महाबलवान माने जाते हैं महावीर हनुमान। हनुमान जन्मोत्सव के पावन अवसर पर आइए चर्चा करते हैं महावीर हनुमान के ऐसे विशिष्ट चारित्रिक गुणों की जिनको अपने जीवन में उतार कर देश की युवा पीढ़ी एक सशक्त व संस्कारवान राष्ट्र का निर्माण कर सकती है।

हनुमान जी का संवाद कौशल विलक्षण है। अशोक वाटिका में जब वे पहली बार माता सीता से रूबरू होते हैं तो अपनी बातचीत के हुनर से न सिर्फ उन्हें भयमुक्त करते हैं वरन उन्हें यह भी भरोसा दिलाते हैं कि वे श्रीराम के ही दूत हैं- “कपि के वचन सप्रेम सुनि, उपजा मन बिस्वास। जाना मन क्रम बचन यह, कृपासिंधु कर दास ।।” (सुंदरकांड) । यह कौशल आज के युवा उनसे सीख सकते हैं। इसी तरह समुद्र लांघते वक्त देवताओं ने कहने पर जब सुरसा ने उनकी परीक्षा लेनी चाही तो उन्होंने अतिशय विनम्रता का परिचय देते हुए उस राक्षसी का भी दिल जीत लिया। कथा है कि जब श्री राम की मुद्रिका लेकर महावीर हनुमान जब सीता माता की खोज में लंका की ओर जाने के लिए समुद्र के ऊपर से उड़ रहे थे। तभी सर्पों की माता सुरसा ने उनके मार्ग में आकर कहा, आज कई दिन बाद मुझे इच्छित भोजन प्राप्त हुआ है। इस पर हनुमान जी बोले “मां, अभी मैं रामकाज के लिए जा रहा हूं, मुझे समय नहीं है। जब मैं अपना कार्य पूरा कर लूं तब तुम मुझे खा लेना। पर सुरसा नहीं मानी और उन्होंने हनुमान जी को खाने के लिए अपना बड़ा सा मुंह फैलाया। यह देख हनुमान ने भी अपने शरीर को दोगुना कर लिया। सुरसा ने भी तुरंत सौ योजन का मुख कर लिया। यह देख हनुमान जी लघु रूप धरकर सुरसा के मुख के अंदर जाकर बाहर लौट आये। हनुमान जी बोले,” मां आप तो खाती ही नहीं है, अब इसमें मेरा क्या दोष ?” सुरसा हनुमान का बुद्धि कौशल व विनम्रता देख दंग रह गयी और उसने उन्हें कार्य में सफल होने का आशीर्वाद देकर विदा कर दिया। यह प्रसंग सीख देता है कि केवल सामर्थ्य से ही जीत नहीं मिलती है, “विनम्रता” से समस्त कार्य सुगमतापूर्वक पूर्ण किए जा सकते हैं।

महावीर हनुमान ने अपने जीवन में आदर्शों से कोई समझौता नहीं किया। लंका में रावण के उपवन में हनुमान जी और मेघनाथ के मध्य हुए युद्ध में मेघनाथ ने ‘ब्रह्मास्त्र’ का प्रयोग किया। हनुमान जी चाहते तो वे इसका तोड़ निकाल सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह उसका महत्व कम नहीं करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने ब्रह्मास्त्र का तीव्र आघात सह लिया। मानसकार ने हनुमानजी की मानसिकता का सूक्ष्म चित्रण करते हुए लिखा है – “ब्रह्मा अस्त्र तेंहि साँधा, कपि मन कीन्ह विचार। जौ न ब्रहासर मानऊँ, महिमा मिटाई अपार ।। हनुमान के जीवन से हम शक्ति व सामर्थ्य के अवसर के अनुकूल उचित प्रदर्शन का गुण सीख सकते हैं। तुलसीदास जी हनुमान चालीसा में लिखते हैं- “सूक्ष्म रूप धरी सियंहि दिखावा, विकट रूप धरी लंक जरावा ।” सीता माता के सामने उन्होंने खुद को लघु रूप में रखा, क्योंकि यहां वह पुत्र की भूमिका में थे, परन्तु संहारक के रूप में वे राक्षसों के लिए काल बन गए। इसी तरह व्युत्पन्नमति का गुण हनुमान जी के चरित्र की अद्भुत विशेषता है। जिस वक़्त लक्ष्मण रण भूमि में मूर्छित हो गए, उनके प्राणों की रक्षा के लिए वे पूरे पहाड़ उठा लाए, क्योंकि वे संजीवनी बूटी नहीं पहचानते थे। अपने इस गुण के माध्यम से वे हमें तात्कालिक विषम स्थिति में विवेकानुसार निर्णय लेने की प्रेरणा देते हैं। हनुमान जी हमें भावनाओं का संतुलन भी सिखाते हैं। लंका के दहन के पश्चात् जब वह दोबारा सीता जी का आशीष लेने पहुंचे, तो उन्होंने सीता जी से कहा कि वे उन्हें अभी वहां से ले जा सकते हैं किंतु वे ऐसा करना नहीं चाहते। रावण का वध करने के पश्चात ही यहां से प्रभु श्रीराम आदर सहित आपको ले जाएंगे। इसलिए उन्होंने सीता माता को उचित समय पर आकर ससम्मान वापस ले जाने को आश्वस्त किया। महावीर हनुमान का महान व्यक्तित्व आत्ममुग्धता से कोसों दूर है। सीता जी का समाचार लेकर सकुशल वापस पहुंचे श्री हनुमान की हर तरफ प्रशंसा हुई, लेकिन उन्होंने अपने पराक्रम का कोई किस्सा प्रभु राम को नहीं सुनाया। जब श्रीराम ने उनसे पूछा- ‘‘हनुमान ! त्रिभुवनविजयी रावण की लंका को तुमने कैसे जला दिया? तब प्रत्युत्तर में हनुमानजी ने जो कहा उससे भगवान राम भी हनुमान जी के आत्ममुग्धताविहीन व्यक्तित्व के कायल हो गए- “सो सब तव प्रताप रघुराई । नाथ न कछू मोरि प्रभुताई ।।”(सुं.कां.) । परम संतोषी हनुमान जी ने भगवान राम के द्वारा दिए मोतियों को भी कंकड़ के समान माना और आजीवन श्रीराम की भक्ति में लीन रहे। अपने मन, वचन और कर्म से काम, क्रोध, मद, लोभ लोभ, दंभ, दुर्भाव, द्वेष, आवेश, राग-अनुराग समस्त दुर्गुण-दुर्बलताओं को अपने वश में कर लेने के कारण वे महावीर कहाते हैं। अष्ट चिरंजीवियों में शुमार महाबली हनुमान अपने सद्गुणों के कारण देवरूप में पूजे जाते हैं और उनके ऊपर “राम से अधिक राम के दास ” की उक्ति चरितार्थ होती है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम स्वयं कहते हैं- जब लोक पर कोई विपत्ति आती है तब वह त्राण पाने के लिए मेरी अभ्यर्थना करता है परंतु जब मुझ पर कोई संकट आता है तब मैं उसके निवारण के लिए पवनपुत्र का स्मरण करता हूं।

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श्रीरामकृष्ण परमहंस बराबर हनुमान जी का उदाहरण देते हुए भक्तों से कहते थे- जैसे मन के गुण से हनुमान जी समुद्र लांघ गये वैसे ही तुम भी अपने इष्ट के नाम के सतत स्मरण से असंभव को संभव कर सकते हो। स्वामी विवेकानन्द ने भी युवाओं से आह्वान किया था कि वे देश के कोने-कोने में और घर-घर में बज्रांग श्री हनुमान जी की पूजा और उपासना का का प्रचलन करें, ताकि देशवासी उनके सद्गुणों से प्रेरणा ले सकें। विडंबना है कि दुनिया की सबसे बड़ी युवा शक्ति भारत के पास होने के बावजूद उचित जीवन प्रबंधन न होने के कारण हम युवाओं की क्षमता का जो समुचित सदुपयोग नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में हमें हनुमान जी की पूजा से अधिक उनके चरित्र को पूजकर उसे आत्मसात करने की आवश्यकता है, जिससे हम भारत को राष्ट्रवाद सरीखे उच्चतम नैतिक मूल्यों के साथ ‘कौशल युक्त’ भी बना सकें। हनुमान जी भक्त भी उनसे बस यहीं आरजू करते हैं की 

'कौन सा संकट मोर गरीब का, जो तुमसे नहीं जात हैं टारों।

संपादक कौशलेन्द्र प्रियदर्शी की कलम से