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PATNA HIGHCOURT - हाईकोर्ट ने बीमा कंपनी पर कसा शिकंजा, कहा - टीबी असाध्य रोग नहीं, दवा से इलाज संभव, देनी होगी मृत व्यक्ति के क्लेम की राशि

PATNA HIGHCOURT - मृत व्यक्ति के इश्योरेंस क्लेम की राशि देने में आनाकानी कर रही पीएनबी मेटलाइफ कंपनी को हाईकोर्ट ने 50 हजार का जुर्माना लगाया है। क्लेम की अपील करनेवाली महिला ने बताया कि 2015 में उनके पति का एक्सीडेंट में डेथ हो गया था।

PATNA HIGHCOURT -  हाईकोर्ट ने बीमा कंपनी पर कसा शिकंजा, कहा - टीबी असाध्य रोग नहीं, दवा से इलाज संभव, देनी होगी मृत व्यक्ति के क्लेम की राशि

PATNA  - पटना हाई कोर्ट ने मृत व्यक्ति के बीमा राशि नहीं दिये जाने पर पीएनबी मेट लाइफ इंडिया लाइफ इन्सुरेंस कम्पनी को पचास हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए याचिका को रद्द कर दिया।जस्टिस सत्यव्रत वर्मा ने इस मामले पर सभी पक्षों की दलीलें सुन कर बाद याचिका को रद्द कर दिया।पीएनबी मेट लाइफ की ओर से कोर्ट को बताया गया कि बीमा कराते समय प्रपोजल फॉर्म भरते समय बीमारी को छुपा लिया गया था।

बाद में पता चला कि बीमित व्यक्ति को टीबी था  और टीबी वालों का बीमा नहीं किया जाता हैं। उनका कहना था कि बीमित व्यक्ति की मृत्यु के बाद कम्पनी को पता चला कि उसे टीबी था। वहीं मृतक की पत्नी की ओर से अधिवक्ता निखिल कुमार अग्रवाल ने कोर्ट को बताया कि बीमित व्यक्ति का बीमा राशि नहीं देने को लेकर कम्पनी बहाना बना रही हैं।उनका कहना था कि बीमा 2015 में हुआ था और कम्पनी के रिपोर्ट में बीमित व्यक्ति के नाम वाले दो व्यक्ति का जिक्र किया गया है, जिनका मृत्यु 2011 और 2014 में  हो गया है।

मृत व्यक्ति कैसे मृत्यु के बाद बीमा करा सकता है।उनका कहना था कि बीमित व्यक्ति की मृत्यु 2015 में रोड एक्सीडेंट में हो गया था।टीबी के बजाय घातक दुर्घटना में मृत्यु हुई हैं। पॉलिसी लेते समय किसी तरह की बीमारी से ग्रसित नहीं था।उनका कहना था कि जिला उपभोक्ता फोरम ने 18 लाख 20 हजार रुपये के साथ साथ 20 हजार मानसिक प्रताड़ना और 10 हजार खर्चा देने का आदेश दिया।

टीबी असाध्य रोग नहीं

इस आदेश को  राज्य अपीलीय प्राधिकरण में चुनौती दी गई।वहां से भी कम्पनी को राहत नहीं मिली। फिर दिल्ली स्थित नेशनल कमीशन में केस किया,लेकिन वहां से भी कोई राहत नहीं मिला। इसके बाद हाई कोर्ट में केस दायर किया गया है।दोनों पक्षों की ओर से पेश दलील को सुनने के बाद कोर्ट ने माना कि टीबी असाध्य रोग नहीं, बल्कि साध्य रोग हैं।लगातार दवा खाने से यह बीमारी ठीक हो सकता है।

कोर्ट ने कम्पनी को एक माह के भीतर बतौर जुर्माना पचास हजार रुपया देने का आदेश दिया और याचिका को रद्द कर दिया।

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