Court Pending Cases: सुप्रीम कोर्ट निचली अदालतों में सालों से लंबित मुकदमों को लेकर गंभीर है। कोर्ट की मॉडल केस फ्लो मैनेजमेंट कमेटी ने हाईकोर्ट को 10 साल से अधिक लंबित मुकदमों को चरणबद्ध तरीके से निपटाने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार को इस संबंध में निर्देश जारी किए हैं।निचली अदालतों की स्थिति भी ठीक नहीं है। राज्य की निचली अदालतों में भी 30 लाख से अधिक मुकदमे लंबित है। वहां भी न्यायिक अधिकारियों की भारी कमी है।
बिहार में पांच साल से अधिक लंबित मुकदमों की संख्या 17.67 लाख के करीब है।राज्य की निचली अदालतों में 36 लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं।इनमें सिविल मामलों के मुकदमों की संख्या 5.34 लाख और क्रिमिनल की 30.76 लाख है।10 साल से अधिक लंबित मुकदमों की संख्या: क्रिमिनल - 701354, सिविल - 94955 , 5-10 साल तक लंबित मुकदमों की संख्या: क्रिमिनल - 1065145, सिविल - 145363
बता दें तत्कालीन चीफ जस्टिस एपी शाही ने 2019 के अगस्त में वकील कोटे और न्यायिक सेवा कोटे से जजों की नियुक्ति के लिए नामों की शिफारिश की थी, लेकिन बात नहीं बनी और सुप्रीम कोर्ट ने सारे नाम लौटा दिए। बहाली तो नहीं हुई पर कई जज रिटायर हो गए।
मुकदमों की सुनवाई के लिए अधिक संख्या में न्यायिक सेवा के अधिकारियों के साथ-साथ लोक अभियोजक (पीपी), अपर लोक अभियोजक (एपीपी) और विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) की जरूरत है।राज्य में 1200 से अधिक पीपी और एपीपी के पद रिक्त हैं।वर्तमान में करीब 1554 न्यायिक सेवा के अधिकारी कार्यरत हैं, जबकि मुकदमों की संख्या 36 लाख से अधिक है। इस तरह से देखें तो प्रति न्यायिक सेवा के अधिकारियों के जिम्मे 2323 मुकदमे हैं।पिछले दिनों राज्य में लंबित मुकदमों को तेजी से निपटाने के लिए मुख्य सचिव ने समीक्षा बैठक कर विधि विभाग और गृह विभाग को विशेष निर्देश दिया था।इसमें मुकदमों में सहयोग के लिए पीपी, एपीपी और एसपीपी की नियुक्ति विधि विभाग को करने के लिए कहा गया है। हालांकि, विधि विभाग के सूत्रों का कहना है कि नियुक्ति को लेकर अभी कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की गयी है।
बिहार में निचली अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ रही है। बहरहाल इस समस्या का समाधान आसान नहीं है और इसके लिए सभी हितधारकों का सहयोग आवश्यक है। सरकार, न्यायपालिका, पुलिस और नागरिक समाज को मिलकर इस चुनौती का सामना करना होगा।