पिकासो करोड़ों में बिके,  शेक्सपियर की दुर्लभ किताबें सैकड़ों करोड़ की फिर हिंदी ग्रंथ ‘मैं’ पर बवाल क्यों? जानिए रत्नेश्वर के ग्रंथ की कीमत क्यों है 15 करोड़

दुनिया के कला बाजार में पिकासो की पेंटिंग्स को समाज और विचारधारा को बदलने वाली कृतियों के रूप में देखा जाता है लेकिन हिंदी साहित्य की कीमत करोड़ों में हो तो सवाल उठ जाता है

Ratneshwar book Main
Ratneshwar book Main- फोटो : news4nation

अंतरराष्ट्रीय कला और साहित्य बाजार में जब पिकासो की पेंटिंग 100 करोड़ से लेकर 1700 करोड़ रुपये तक में बिकती है, या शेक्सपियर की First Folio और Bay Psalm Book जैसी दुर्लभ किताबें सैकड़ों करोड़ रुपये में नीलाम होती हैं, तब इसे सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर मानकर सम्मान दिया जाता है। लेकिन जब हिंदी साहित्य के लेखक रत्नेश्वर की पुस्तक ‘मैं’ को 15 करोड़ रुपये के मुद्रित मूल्य के साथ प्रस्तुत किया गया, तो इस पर सवालों और आलोचनाओं की बाढ़ आ गई। यह विवाद केवल एक किताब की कीमत तक सीमित नहीं है, बल्कि हिंदी और भारतीय साहित्य के आत्मविश्वास, उसके मूल्यांकन और वैश्विक स्वीकार्यता को लेकर एक बड़े सवाल की तरह सामने आया है।


विदेशी कृतियाँ करोड़ों में, भारतीय ग्रंथ पर सवाल

दुनिया के कला बाजार में पिकासो की पेंटिंग्स को समाज और विचारधारा को बदलने वाली कृतियों के रूप में देखा जाता है। इसी तरह शेक्सपियर की किताबों को अंग्रेज़ी साहित्य की नींव मानकर ऐतिहासिक महत्व दिया गया। इनकी ऊंची कीमतों पर कभी नैतिक या बौद्धिक आपत्ति नहीं उठी। इसके उलट, रत्नेश्वर की पुस्तक ‘मैं’ की 15 करोड़ रुपये की कीमत सामने आते ही हिंदी साहित्य में तीखी बहस शुरू हो गई। आलोचकों ने इसे दिखावा बताया, जबकि समर्थकों का कहना है कि यह भारतीय साहित्य को लेकर हमारी हीन भावना को उजागर करता है।


‘ज्ञान की परम अवस्था’ का दावा

पुस्तक ‘मैं’ के कवर स्पाइन पर लिखा है— “ज्ञान की परम अवस्था का अविष्कार”। रत्नेश्वर के साक्षात्कार और ग्रंथ की तस्वीरें देश-विदेश के अखबारों, चैनलों और सोशल मीडिया पर सामने आ चुकी हैं। समर्थकों का तर्क है कि यदि यह ग्रंथ सचमुच ज्ञान की उस परम अवस्था की ओर संकेत करता है, जिसकी तलाश सदियों से मानवता करती रही है, तो इसकी कीमत 15 करोड़ से कहीं अधिक भी हो सकती है।


यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि अब तक इतिहास में किसी भी द्रष्टा या ज्ञान प्राप्त व्यक्ति के बारे में यह स्पष्ट नहीं किया जा सका कि वह कौन-सी अंतिम अवस्था थी, जिसके बाद उन्हें ‘ज्ञानी’ कहा गया। यदि ‘मैं’ इस जिज्ञासा का उत्तर देती है, तो इसका महत्व केवल आर्थिक नहीं, बल्कि बौद्धिक और दार्शनिक है।


सोशल मीडिया पर दिखा समर्थन

विवाद के बीच सोशल मीडिया पर इस ग्रंथ को लेकर व्यापक चर्चा देखने को मिली है। एक जानकारी के अनुसार फेसबुक पर #main हैशटैग के साथ करीब 44 लाख पोस्ट और इंस्टाग्राम पर लगभग 29 लाख पोस्ट किए जा चुके हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि देश-विदेश में लाखों लोग इस पुस्तक और इसके विचारों को लेकर उत्सुक हैं।


असल बहस कीमत नहीं, विचारों की

साहित्यकारों का एक वर्ग मानता है कि हिंदी और भारतीय साहित्य की विडंबना यही है कि उसे भावनात्मक रूप से पूजा तो जाता है, लेकिन बौद्धिक और आर्थिक मूल्य देने से समाज कतराता है। विदेशी ग्रंथों की करोड़ों की नीलामी को सहज स्वीकार कर लिया जाता है, लेकिन भारतीय लेखक की किताब पर मूल्य तय होते ही विवाद खड़ा हो जाता है।


आखिरकार सवाल यही है—क्या रत्नेश्वर की ‘मैं’ भारतीय ज्ञान परंपरा को नई दिशा देती है? क्या यह पाठक को जीवन और चेतना की नई समझ की ओर ले जाती है? यदि उत्तर ‘हां’ है, तो फिर कीमत गौण हो जाती है। यह बहस केवल एक किताब पर नहीं, बल्कि हिंदी और भारतीय साहित्य के भविष्य, उसके आत्मविश्वास और वैश्विक पहचान पर है।

कमलेश की रिपोर्ट