सियासत की अनोखी दावत: जिसने लालू यादव को लाठियों से पिटवाया, उसे सीएम बनने के बाद 'मटन पार्टी' पर बुलाया, जानिए पूरा मामला

 सियासत की अनोखी दावत: जिसने लालू यादव को लाठियों से पिटवाया

PATNA : बिहार की राजनीति में कई ऐसे अध्याय हैं, जो सत्ता के दांव-पेंच और व्यक्तिगत संबंधों की जटिलताओं को दर्शाते हैं। ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा 1974 के छात्र आंदोलन से जुड़ा है, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर खान के आदेश पर आंदोलनकारी छात्रों पर लाठियाँ बरसाई गई थीं, और उन्हीं आंदोलनकारियों में एक युवा नेता लालू प्रसाद यादव भी थे। लेकिन समय का पहिया ऐसा घूमा कि दशकों बाद, वही लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने और उन्होंने अपने 'विरोधी' अब्दुल गफूर को अपने मुख्यमंत्री आवास पर खास 'मटन पार्टी' में आमंत्रित किया।

आंदोलन से सीएम तक का सफर

1974 का बिहार छात्र आंदोलन, जिसे 'सम्पूर्ण क्रांति' के नाम से भी जाना जाता है, जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ एक बड़ा जनांदोलन था। इस आंदोलन में लालू यादव एक मुखर छात्र नेता के रूप में उभरे थे। उस समय बिहार की कमान संभाल रहे मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर खान ने आंदोलन को दबाने के लिए कठोर कदम उठाए, जिसमें लाठीचार्ज भी शामिल था। इस दौरान कई छात्र नेताओं को चोटें आईं। जेपी आंदोलन के कारण उन पर इस्तीफे का दबाव बना। इसके अलावा उनके शासन काल में ही 1975 में बिहार के समस्तीपुर में ललित नारायण मिश्रा की हत्या हो गई। ये घटनाएं खान के खिलाफ गईं और 1975 में कांग्रेस की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अब्दुल गफूर खान को हटाकर उनकी जगह जगन्नाथ मिश्रा को मुख्यमंत्री बना दिया। 

केंद्र में गए गफूर

1984 के आम चुनाव में गफूर सीवान सीट से उतरे। नतीजे आए तो कांग्रेस को दो-तिहाई सीटें मिलीं। गफूर भी जीते। राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और गफूर केंद्रीय मंत्री। हालाँकि बाद में राजीव गांधी से विवाद के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 1990 में वे कांग्रेस छोड़कर जनता दल के साथ हो लिए। इसी दौरान लालू बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने अपने आवास पर एक विशेष दावत का आयोजन किया। यह कोई आम पार्टी नहीं थी, बल्कि बिहार की मशहूर 'मटन पार्टी' थी। इस दावत में उन्होंने अब्दुल गफूर खान को भी आमंत्रित किया, जिन्होंने कभी उन पर लाठी चलवाई थी। गफूर जब 1991 का आम चुनाव आया, तो वे गोपालगंज से खड़े हुए। जीतकर फिर से संसद पहुंचे, लेकिन बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव से उनकी ज्यादा दिन नहीं बनी। वे लालू को छोड़कर अलग हो गए। 

नीतीश का दिया साथ

1994 में जनता दल के 14 सांसदों के साथ जॉर्ज फर्नांडीस और नीतीश कुमार ने अलग ‘समता पार्टी’ बना ली। अब्दुल गफूर ने इसमें अहम भूमिका निभाई। नेताओं और सांसदों को लामबंदी किया। समता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष भी बने। दो साल बाद 1996 में हुए चुनाव में समता पार्टी के टिकट पर गफूर ने गोपालगंज से चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए। यहां तक कि वे तीसरे नंबर पर आ गए। 1998 में फिर से आम चुनाव हुए। गफूर गोपालगंज से आखिरी बार चुनावी मैदान में उतरे। जीतकर वे 13 दिन की लोकसभा में भी बैठे।