Patna Incident: घर में खेलते-खेलते हुआ बड़ा हादसा! तीन साल की बच्ची ने खेलते-खेलते निगल ली पेंसिल बैटरी, डॉक्टरों ने बचाई जान
Patna Incident: पटना सिटी में तीन साल की बच्ची ने गलती से पेंसिल बैटरी निगल ली। सत्यदेव सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में डॉक्टरों ने एंडोस्कोपी के जरिए बैटरी निकालकर उसकी जान बचाई।
पटना सिटी के एक सामान्य बुधवार को एक ऐसा हादसा हुआ, जिसने पूरे परिवार को दहशत में डाल दिया। सिर्फ तीन साल की मासूम बच्ची घर में खेल रही थी, जब उसने खेल-खेल में पेंसिल बैटरी (AAA सेल) निगल ली। कुछ ही देर में बच्ची की तबीयत बिगड़ने लगी और वह सांस लेने में तकलीफ महसूस करने लगी। परिजनों ने पहले तो घरेलू उपाय अपनाने की कोशिश की किसी ने केला खिलाया, किसी ने पानी पिलाया, लेकिन हालात और गंभीर होते चले गए। घबराए परिवारवालों ने तुरंत बच्ची को सत्यदेव सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, पटना सिटी पहुंचाया।
डॉक्टरों ने एंडोस्कोपी से निकाली बैटरी
अस्पताल पहुंचने तक बच्ची की हालत काफी नाजुक थी। डॉक्टरों ने तुरंत एक्स-रे किया, जिसमें पता चला कि बैटरी खाद्य नली (Esophagus) में फंसी हुई है। यदि कुछ घंटे और निकल जाते तो बैटरी से निकलने वाले केमिकल उसके पेट और आंतों को नुकसान पहुंचा सकते थे। वरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट और हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. सत्यदेव ने विशेषज्ञ टीम के साथ तत्काल एंडोस्कोपी (Endoscopic Retrieval) प्रक्रिया शुरू की। जनरल एनेस्थीसिया के तहत लगभग 40 मिनट चले इस ऑपरेशन में बैटरी को सुरक्षित निकाल लिया गया। डॉक्टरों के मुताबिक कुछ ही मिनटों की देरी बच्ची की जान ले सकती थी।
दो घंटे में स्थिति जानलेवा बन सकती थी
ऑपरेशन का नेतृत्व करने वाली डॉ. अमृता ने बताया कि इतनी छोटी उम्र में बैटरी निगलना बहुत खतरनाक होता है।इसके अंदर मौजूद अल्कलाइन केमिकल दो घंटे में शरीर के अंदरूनी अंगों को जला सकता है।उन्होंने कहा कि इतने छोटे बच्चे को एनेस्थीसिया देना जोखिम भरा था,लेकिन टीम ने पूरी सावधानी से यह प्रक्रिया पूरी की।ऑपरेशन सफल रहा और कुछ ही घंटों में बच्ची की हालत स्थिर हो गई।
घरेलू उपाय न करें, तुरंत अस्पताल पहुंचें
बच्ची के स्वस्थ होने के बाद डॉक्टरों ने अभिभावकों को विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी।उन्होंने कहा कि 3 से 6 साल की उम्र में बच्चे हर वस्तु को मुंह में डालकर देखने की कोशिश करते हैं,इसलिए छोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में लगी बैटरियों को बच्चों की पहुंच से दूर रखें।डॉ. अमृता ने कहा कि ऐसे मामलों में घरेलू नुस्खे उल्टा नुकसान पहुंचा सकते हैं। केला या दूध देने से बैटरी नीचे की बजाय ऊपर फंस सकती है, जिससे सांस रुकने का खतरा बढ़ जाता है।”
सत्यदेव हॉस्पिटल की तत्परता बनी जीवन रक्षक
अस्पताल प्रशासन ने बताया कि बच्ची को लाते ही डॉक्टरों ने बिना देरी आपातकालीन प्रक्रिया शुरू कर दी।डॉ. सत्यदेव और डॉ. अमृता के नेतृत्व में यूरोलॉजी और पीडियाट्रिक सर्जरी टीम नेसेकंडों में निर्णय लिया कि एंडोस्कोपी ही एकमात्र सुरक्षित तरीका है। प्रक्रिया सफल रही, बच्ची की रिपोर्ट सामान्य आई और 24 घंटे के ऑब्जर्वेशन के बाद उसे छुट्टी दे दी गई। डिस्चार्ज के वक्त जब बच्ची ने मुस्कुराते हुए डॉक्टरों को देखा तो परिवार की आंखों में राहत और कृतज्ञता दोनों छलक आए।