7 साल तक की सजा वाले केस में भी अग्रिम जमानत पर सुनवाई जरूरी, खारिज नहीं होगी बेल अर्जी, पटना हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट को दिया सख्त निर्देश

पटना हाईकोर्ट ने अधीनस्थ अदालतों को निर्देश दिया है कि 7 साल तक की सजा वाले मामलों में भी अग्रिम जमानत याचिकाओं पर मेरिट के आधार पर सुनवाई हो।

7 साल तक की सजा वाले केस में भी अग्रिम जमानत पर सुनवाई जरूरी

Patna - पटना हाईकोर्ट ने राज्य की अधीनस्थ अदालतों (Subordinate Courts) को कड़ा निर्देश दिया है कि वे अग्रिम जमानत याचिकाओं का निपटारा "यांत्रिक तरीके" (Mechanical Manner) से न करें। कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि जिन मामलों में अधिकतम सजा सात वर्ष तक है, उनमें भी अग्रिम जमानत याचिका पर मेरिट (गुण-दोष) के आधार पर सुनवाई करना अनिवार्य है।

धारा 41-A का बहाना नहीं चलेगा 

जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस डॉ. अंशुमान की खंडपीठ ने मोह्म्मद राजा बनाम बिहार राज्य मामले में सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल अर्नेश कुमार फैसले या सीआरपीसी की धारा 41-ए (Section 41-A CrPC) का हवाला देकर सेशन कोर्ट अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता। अक्सर देखा गया है कि कम सजा वाले मामलों में अदालतें यह कहकर याचिका निपटा देती हैं कि पुलिस ने नोटिस दे दिया है, इसलिए गिरफ्तारी की जरूरत नहीं है।

गिरफ्तारी की आशंका और संवैधानिक अधिकार 

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भले ही पुलिस धारा 41-ए के तहत नोटिस जारी कर दे, लेकिन आरोपी के मन में गिरफ्तारी की आशंका (Apprehension of Arrest) हमेशा बनी रहती है।

  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता

  •  ऐसी स्थिति में अग्रिम जमानत याचिका पूरी तरह से विचारणीय (Maintainable) है। यदि अदालतें तकनीकी आधार पर सुनवाई से इनकार करती हैं, तो यह व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का हनन होगा। इसलिए, कोर्ट को केस के तथ्यों को देखना ही होगा।

    पुराने फैसलों पर स्थिति स्पष्ट: क्या सही, क्या गलत? 
  • हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर विरोधाभासी फैसलों को लेकर भी स्थिति साफ कर दी है।  कोर्ट ने नवनीत कुमार सिंह और गौरी शंकर राय मामलों में दिए गए फैसलों को सही कानून माना है।वहीं, नौशाद अंसारी मामले के निर्णय को 'पर इनक्यूरियम' (Per Incuriam - यानी कानून की अनदेखी में दिया गया फैसला) करार दिया है।


इस फैसले के बाद अब निचली अदालतों को कम सजा वाले अपराधों में भी आरोपियों का पक्ष गंभीरता से सुनना होगा और वे सीधे तौर पर 'नोटिस तामील' का हवाला देकर अग्रिम जमानत याचिका खारिज नहीं कर सकेंगी।