पटना HC का बड़ा फैसला: सहरसा DM के आदेश पर जताई नाराजगी, सरकार पर 1 लाख का जुर्माना; सभी जिलाधिकारियों को चेतावनी

पटना HC का बड़ा फैसला: सहरसा DM के आदेश पर जताई नाराजगी, सरक

Patna - पटना हाईकोर्ट ने बीसीसी कानून  की धारा 3 के तहत डीएम के आदेश पर कड़ी नाराजगी जताते हुए राज्य सरकार पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया।कोर्ट ने सरकार को एक माह के भीतर सरकार को जुर्माना राशि आवेदक को देने का आदेश दिया।

साथ ही  बेवजह मुकदमेबाजी करने को लेकर दस हजार रुपये बतौर खर्चा देने का आदेश दिया।जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद और जस्टिस सौरेन्द्र पांडेय की खंडपीठ ने सहरसा के राकेश कुमार यादव उर्फ राकेश यादव की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिया।

कोर्ट को बताया गया कि  डीएम,सहरसा ने आवेदक को बीसीसी कानून के तहत प्रत्येक दिन दो बार सुबह 9 बजे से 11 बजे तक और फिर शाम को 5 बजे से 8 बजे तक पुलिस थाना में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का आदेश दिया।उनका कहना था कि आवेदक के घर से पुलिस स्टेशन करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर हैं।

कोर्ट ने कहा कि क्या डीएम ने कानूनी रूप से ऐसा आदेश पारित किया हैं। इस पर सरकारी वकील किंकर कुमार ने कोर्ट को बताया कि बीसीसी कानून के नियम 6 का हवाला देते हुए कहा कि एक दिन में केवल एक बार पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए आदेश दिया जा सकता हैं।

वही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से कोर्ट में हाजिर डीएम ने बताया कि सहरसा के पूर्व डीएम ने यह आदेश जारी किया हैं।उन्होंने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि भविष्य वह ध्यान रखेंगे कि ऐसा आदेश पारित नहीं हो सकें। कोर्ट ने कहा कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के दायित्व के तहत एक संवैधानिक कोर्ट होने के नाते मूक दर्शक नहीं बना रह सकता।जहां कानून की स्थापित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जाता है।

कोर्ट ने इस मामले में डीएम की पूरी तरह से गलती मानते हुये कहा कि सख्त आदेश पारित करने के प्रयास में न केवल आवेदक को पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र से बाहर निकालने का आदेश दिया, बल्कि उसे बसनही पुलिस स्टेशन में प्रत्येक दिन दो बार सुबह 9 से 11 बजे के बीच और शाम 5 से 8 बजे के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का भी आदेश दिया। 

कोर्ट ने कहा कि नियमों का उल्लंघन करके आवेदक की स्वतंत्रता को अवैध रूप से कम किया गया और आवेदक को लगातार दो महीने तक कष्ट सहना पड़ा।कोर्ट ने सरकार को क्षतिपूर्ति और लागत राशि को दोषी अधिकारियों से वसूलने की पूरी छूट दी। वही गृह विभाग के प्रधान सचिव को आदेश की प्रति राज्य के सभी जिलाधिकारियों को अवगत कराने का दायित्व सौंपा।