पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: आपराधिक केस में बरी होना विभागीय कार्रवाई से राहत का आधार नहीं, पुलिसकर्मी की बर्खास्तगी सही
पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी आपराधिक मुकदमे में बरी हो जाता है, तो इसे आधार बनाकर वह विभागीय कार्रवाई से बच नहीं सकता।
Patna - पटना हाईकोर्ट ने अपने निर्णय से स्पष्ट किया कि किसी कर्मचारी का आपराधिक मामले में बरी होना अपने आप में विभागीय कार्रवाई से राहत का आधार नहीं बनता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आपराधिक मुकदमे और विभागीय जांच दोनों की प्रकृति अलग-अलग होती है।
जस्टिस पार्थ सारथी की एकलपीठ ने एक पुलिसकर्मी की बर्खास्तगी के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया।कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों में आरोपों को कड़े सबूतों के आधार पर साबित करना होता है, जबकि विभागीय जांच में उपलब्ध तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लिया जा सकता है।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के समर बहादुर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य तथा डीआईजी बनाम एस. समुथिरम मामलों का हवाला दिया। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अजीत कुमार सिंह ने पक्ष रखा, जबकि राज्य की ओर से प्रशांत प्रताप (जीपी-2) और शादवाल हर्ष ने कोर्ट में तथ्यों को रखा।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता का आपराधिक मामले में बरी होना ‘सम्मानजनक बरी’ नहीं माना जा सकता।