कलियुग की 'श्रवण कुमार' बनी बहू: कोमा से लौटी सास की 10 साल से सेवा कर रही हैं पिंकी प्रियदर्शनी

पिंकी प्रियदर्शनी सिंह पिछले एक दशक से अपनी दिव्यांग सास की समर्पित सेवा कर रही हैं। डॉक्टरों द्वारा जवाब दे देने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और आज वे सेवा और मानवीय मूल्यों की एक महान मिसाल बन गई हैं.

कलियुग की 'श्रवण कुमार' बनी बहू: कोमा से लौटी सास की 10 साल

Patna - आज के दौर में जहाँ रिश्तों में बढ़ती दूरियाँ आम बात हैं, वहीं पिंकी प्रियदर्शनी सिंह ने सेवा और समर्पण की एक ऐसी कहानी लिखी है जो समाज के लिए मिसाल बन गई है. पिछले 10 वर्षों से पिंकी अपनी 81 वर्षीया सास, मीना देवी की सेवा में दिन-रात एक किए हुए हैं. 10 साल पहले जब मीना देवी को ब्रेन स्ट्रोक आया और वे कोमा में चली गईं, तब डॉक्टरों और रिश्तेदारों ने भी उम्मीद छोड़ दी थी. लेकिन पिंकी की जिद ने उन्हें पटना के IGIMS के ICU में 19 दिनों तक रखा, जिसके बाद एक चमत्कार की तरह उनकी चेतना वापस लौटी. 

पूरी तरह आश्रित सास के लिए बनीं सहारा


ब्रेन स्ट्रोक के कारण मीना देवी का दायां हिस्सा (हाथ और पैर) पूरी तरह काम नहीं करता और वे स्वयं करवट लेने तक में असमर्थ हैं. इसके बावजूद, पिंकी अपने पति के साथ मिलकर उन्हें रोज नहलाने, बाथरूम ले जाने और भोजन कराने जैसी हर छोटी-बड़ी जरूरत का ख्याल स्वयं रखती हैं. अपनी निजी खुशियों और स्वास्थ्य की चिंता किए बिना, पिंकी ने कभी अपनी सास को अकेला नहीं छोड़ा. 

ससुर की भी इसी तरह की थी सेवा

पिंकी का यह सेवा भाव केवल उनकी सास तक ही सीमित नहीं रहा. उन्होंने अपने ससुर स्वर्गीय अवध बिहारी सिंह की भी मृत्यु (15 नवंबर 2024) तक इसी समर्पण के साथ सेवा की थी. पिंकी न केवल अपने परिवार की धुरी हैं, बल्कि अपने सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंदों की मदद करने में भी पीछे नहीं हटतीं. 

समाज के लिए एक प्रेरणा

पिंकी प्रियदर्शनी सिंह का जीवन उन लोगों के लिए एक कड़ा संदेश है जो बुजुर्गों की सेवा को बोझ मानते हैं. करुणा और मानवीय मूल्यों की यह मिसाल साबित करती है कि यदि मन में जिम्मेदारी और सम्मान का भाव हो, तो किसी भी रिश्ते को बोझ नहीं बल्कि आशीर्वाद बनाया जा सकता है