Indian Rail: बिहार का यह स्टेशन हमेशा के लिए हो गया बंद, रेलवे ने 9 छोटे स्टेशनों पर लगाया ताला,देख लीजिए लिस्ट
Indian Rail:देश भर में फैले 9 पुराने और कम इस्तेमाल वाले रेलवे स्टेशनों को स्थायी रूप से बंद करने का फैसला लेकर रेल मंत्रालय ने यात्रियों को हैरान कर दिया है।
Indian Rail: भारतीय रेलवे ने एक बार फिर अपना वह चेहरा दिखाया है, जो आम जनता के लिए कम और सरकारी आंकड़ों की चमक के लिए ज्यादा फिक्र करता है। देश भर में फैले 9 पुराने और कम इस्तेमाल वाले रेलवे स्टेशनों को स्थायी रूप से बंद करने का फैसला लेकर रेल मंत्रालय ने यात्रियों को हैरान कर दिया है। यह कदम सुरक्षा, परिचालन खर्च की कटौती और यात्री संख्या की कमी का हवाला देकर उठाया गया है, मगर सवाल यह है कि क्या यह वाकई तरक्की की राह है या दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले गरीबों-मजलूमों की सुविधाओं पर कुल्हाड़ी मारने का बहाना?
रेलवे के आधिकारिक हुक्मनामे में साफ-साफ कहा गया है कि पिछले कुछ बरसों से इन स्टेशनों पर मुसाफिरों की तादाद लगातार गिरी है और रखरखाव का खर्चा बोझ बन गया था। इसलिए 24 अक्टूबर 2025 से इन पर ताला लगा दिया गया। बंद होने वाले स्टेशन हैं बिहार के पिंडरा स्टेशन को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है। यहीं नहीं उत्तर प्रदेश का धनौरी और नरैनी, मध्य प्रदेश का सिवनी रोड, झारखंड का चाकनपुर, ओडिशा का रामगढ़ हाल्ट, राजस्थान का बांसवाड़ा, पश्चिम बंगाल का कालीघाट, और महाराष्ट्र का भवनगांव को भी बंद कर दिया गया है।
ये स्टेशन अलग-अलग जोनों और सूबों में बिखरे हुए हैं, जहां ज्यादातर ग्रामीण और पिछड़े इलाके आते हैं।रेलवे का दावा है कि इन स्टेशनों से गुजरने वाली गाड़ियां अब पास के बड़े स्टेशनों पर रुकेंगी, ताकि मुसाफिरों को ज्यादा तकलीफ न हो। मिसाल के तौर पर, नरैनी की ट्रेनें अब बांदा या अतर्रा पर ठहरेंगी, जबकि बांसवाड़ा की गाड़ियां उदयपुर या डूंगरपुर शिफ्ट हो गई हैं। यात्रियों को नसीहत दी गई है कि नई टाइम टेबल चेक करें। लेकिन हकीकत यह है कि ये वैकल्पिक स्टेशन दूर हैं, जिससे गरीब मजदूरों, किसानों और छोटे व्यापारियों को अतिरिक्त खर्च और वक्त की मार झेलनी पड़ेगी। स्थानीय स्तर पर इस फैसले के खिलाफ गुस्सा फूट रहा है लोग सड़कों पर उतर रहे हैं, क्योंकि उनके लिए रेलगाड़ी जीवनरेखा है।यह पूरा मामला 'अमृत भारत स्टेशन योजना' का हिस्सा बताया जा रहा है, जिसमें रेलवे खुद को आधुनिक बनाने का ढोंग रच रहा है।
बड़े स्टेशनों को चमकदार बनाया जा रहा है बेहतर सुविधाएं, डिजिटल टिकटिंग, आलीशान इंतजाम। मगर सवाल उठता है कि क्या तरक्की का मतलब सिर्फ शहरों की चका-चौंध है? छोटे स्टेशनों को बंद करके संसाधन बचाने का यह खेल आखिर किसके फायदे के लिए है? क्या यह मोदी सरकार की वह 'सबका साथ, सबका विकास' की बात है, जो ग्रामीण भारत को पीछे धकेल रही है? रेलवे नेटवर्क को सुचारू बनाने के नाम पर कमजोर तबकों की अनदेखी करना कितना जायज है?
यह फैसला रेलवे की प्राथमिकताओं पर सवालिया निशान लगाता है। एक तरफ वंदे भारत जैसी तेज रफ्तार गाड़ियां, दूसरी तरफ गांवों के स्टेशन बंद। अगर यात्री संख्या कम है, तो क्यों नहीं उन इलाकों में रेल सुविधा बढ़ाई जाती? सुरक्षा और खर्च का रोना रोकर क्या हम उस भारत को भूल जाएंगे, जहां रेल गरीब की सवारी हुआ करती थी? स्थानीय लोग नाराज हैं, और उनकी नाराजगी जायज है। रेल मंत्रालय को इस फैसले पर फिर सोचना चाहिए, वरना यह आधुनिकीकरण नहीं, बल्कि आम आदमी से दूरियां बढ़ाने वाला कदम साबित होगा।