15 करोड़ का 'मैं' ग्रंथ लिखने वाले रत्नेश्वर को पहले भी ‘रेखना मेरी जान’ के लिए मिला था 1.75 करोड़, बिहार का साहित्यिक परिदृश्य बदलने वाले लेखक की अनोखी यात्रा
रत्नेश्वर को 'रेखना मेरी जान' के लिए 1.75 करोड़ का शाइनिंग अमाउंट मिला था. अब ‘मैं’ जो अलौकिक दुनिया की ग्रन्थ है उसके लिए 15 करोड़ का दावा किया गया है।
Patna Book Fair : दुनिया भर के साहित्यिक मंच आज जिस नाम पर सबसे अधिक चर्चा कर रहे हैं, वह है रत्नेश्वर सिंह—एक ऐसा लेखक जिसने संघर्षों की धूप में तपकर ऐसी किताबें लिखीं, जिन्होंने हिंदी साहित्य की परिभाषा ही बदल दी। एक तरफ है 15 करोड़ रुपये की कीमत वाला आध्यात्मिक ग्रंथ ‘मैं’, और दूसरी ओर है 1 करोड़ 75 लाख की शाइनिंग अमाउंट पाने वाली ‘रेखना मेरी जान’—दोनों की यात्रा अपने-अपने समय की रिकॉर्ड-तोड़ कहानी है।
संघर्ष से चेतना तक—एक जीवन में दो चरम
चार वर्ष की उम्र में पिता खोने वाले रत्नेश्वर को बचपन में ही जीवन की क्रूर वास्तविकताएँ दिख गईं। परिवार के बंटवारे में जेब में मात्र 7 रुपये, और पेट के लिए सत्तू-नमक-प्याज का सहारा। लेकिन साधारण जीवन से असाधारण चेतना तक की यात्रा यहीं से शुरू होती है। ‘मैं’ के लेखक वही व्यक्ति हैं जिन्होंने कभी 8 किलोमीटर पैदल चलकर खेत में काम किया… और अब वही व्यक्ति ब्रह्मलोक में “21 दिन की स्थितप्रज्ञ अवस्था” का दावा करते हैं। एक जीवन में ये दो चरम ही उनकी लेखनी की सबसे बड़ी ताकत माना जा रहा है।
साहित्य से आध्यात्मिकता की ओर
रत्नेश्वर की पहचान पहले एक कथाकार, उपन्यासकार और पत्रकार के रूप में बनी। उनका उपन्यास ‘रेखना मेरी जान’, जो ग्लोबल वार्मिंग और प्रेम की दार्शनिक कथा है, उस समय चर्चा में आया जब किसी हिंदी उपन्यास के लिए 1.75 करोड़ रुपये की शाइनिंग अमाउंट दी गई—साहित्यिक क्षेत्र में चौंकाने वाली घटना। लेकिन यही लेखक अब ‘मैं’ के माध्यम से साहित्य को एक धर्मग्रंथ, एक आध्यात्मिक मत, और एक चेतना-दर्शन की दिशा दे रहा है यानी रत्नेश्वर दो अलग-अलग दुनियाओं के लेखक हैं— एक हकीकत की दुनिया, दूसरी ब्रह्मलोक की।
भारत में साहित्य के बाज़ार को चुनौती देने वाला लेखक
हिंदी साहित्य में जहां किताबें 200–300 रुपये में बिकती हैं, वहाँ— रेखना मेरी जान एक उपन्यास 1.75 करोड़ में साइन होता है और एक ग्रंथ की कीमत 15 करोड़ रूपये रखी जाती है यह सिर्फ कीमत नहीं—यह साहित्य के मूल्यांकन प्रणाली को चुनौती है। बिहार का एक लेखक वैश्विक स्तर पर यह संदेश दे रहा है कि— “हिंदी कि किताबें भी करोड़ों की कीमत पा सकती हैं।”
पटना पुस्तक मेला—सिर्फ मेले का अध्यक्ष नहीं, मेले की आत्मा
रत्नेश्वर सिंह 31वर्षों से अविभाजित बिहार (जब झारखंड अलग नहीं हुआ था) के सबसे बड़े पुस्तक मेले 'पटना पुस्तक मेला' के अध्यक्ष हैं और इसी मेले में आज उनकी लिखी किताब "मैं" भीड़ का केंद्र है— यह एक दिलचस्प संयोग भी है और एक साहित्यिक यात्रा का प्रतीक भी.. ‘मैं’ को देखने और सेल्फी लेने के लिए विशेष कतारें बन रही हैं ।
‘मैं’—रहस्य, विवाद और दार्शनिक विस्तार
‘मैं’ को सिर्फ एक आध्यात्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक रहस्यग्रंथ, एक गूढ़ यात्रा, और कई लोगों के लिए विवाद का विषय भी माना जा रहा है। क्योंकि लेखक दावा करते हैं— उन्होंने ब्रह्मलोक की यात्रा की,रासलीला का प्रत्यक्ष दर्शन किया,एकात्मक अवस्था में चेतना के मूल स्रोत को देखा और पूरा ग्रंथ 3 घंटे 24 मिनट में लिख डाला। यह दावा जितना अद्भुत है, उतना ही विवादों को जन्म देने वाला भी। हालांकि इसके पहले भी रत्नेश्वर को उनकी एक किताब के लिए 1.75 करोड़ शाइनिंग अमाउंट था । उनकी लिखी 'रेखना मेरी जान' जो व्यावहारिक दुनिया की कहानी वाली किताब है उसके लिए 1.75 करोड़ का शाइनिंग अमाउंट मिला था. अब ‘मैं’ जो अलौकिक दुनिया की ग्रन्थ है उसके लिए 15 करोड़ का दावा किया गया है।
7 रुपये वाला लड़का जो बना लाखों दिलों का 'करोड़पति लेखक'
रत्नेश्वर की यह कहानी सिर्फ एक लेखक की नहीं बल्कि यह कहानी है संघर्ष से चमत्कार तक की यात्रा की। 7 रुपये वाला लड़का,1.75 करोड़ का उपन्यासकार और 15 करोड़ के आध्यात्मिक ग्रंथ का रचयिता बन जाते हैं। इस यात्रा ने रत्नेश्वर को साहित्यिक, आध्यात्मिक और सामाजिक—तीनों स्तरों पर एक अनोखा स्थान दे दिया है।
कमलेश की रिपोर्ट