PATNA : कहते हैं की राजनीति में जो दिखता है वो होता नहीं है और जो होता है वो दिखता नहीं है। अपनी-अपनी स्वार्थ सिद्धि और वोट बैंक के इस खेल में राजनीतिक पार्टियों का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका अंदाजा लगाना इतना सहज नहीं है फिर भी राजनीतिक पंडित अपने अनुभव के आधार पर इस उलझी गुत्थी को सुलझाने की कोशिश करते रहे हैं। संयोग और प्रयोग के इस खेल में कब किस घटना को महज संयोग मान लिया जाए या फिर इसमें निहित प्रयोग का आकलन कर लिया जाए, यह आम जनता के समझ से परे है और न ही यह इन विषयों पर गहरी पकड़ रखने वाले राजनीतिक विशेषज्ञों के लिए इतना आसान है। अगर हम बात राहुल के बिहार दौरे की करें तो बीस दिनों के अंदर राहुल गांधी का यह दूसरा बिहार दौरा है। इस साल पहली बार राहुल गांधी संविधान सुरक्षा सम्मेलन में भाग लेने के लिए 18 जनवरी,2025 को पटना आए थे वही दूसरी बार राहुल 5 फरवरी, 2025 को अपने पार्टी के दलित नेता और मंत्री रह चुके जगलाल चौधरी के जयंती समारोह में शामिल होने के लिए पटना में मौजूद थे। बिहार को लेकर राहुल गांधी की इतनी राजनीतिक तत्परता पहली बार देखी जा रही है। वैसे राहुल समय-समय पर बिहार के दौरे पर आते रहे हैं और दलितों की राजनीति करना तो अब राहुल की पहचान बन गई है। चाहे वो भट्टा परसौर की घटना पर राहुल गांधी का मुखर होना हो या जातीय-जनगणना को लेकर, या फिर अचानक किसी दलित के घर पहुंचकर उसके घर खाना खाना ही क्यों न हो। समय-समय पर राहुल का दलित प्रेम उमड़ता रहा है। तो क्या राहुल गांधी जैसे बड़े नेता का जगलाल चौधरी के जयंती में शामिल होना सिर्फ उनके दलित प्रेम का परिचायक है या फिर कोई राजनीतिक प्रयोग। हम ऐसा इसलिए कह रहें हैं क्योंकि जिन जगलाल चौधरी का नाम तक सभा में मौजूद कांग्रेस के कार्यकर्ता नहीं ले पा रहे थे, उनकी जयंती समारोह में राहुल गांधी जैसे दिग्गज नेता का दिल्ली से पटना आना महज उनके दलित प्रेम को दर्शाता है या फिर कोई राजनीतिक प्रयोग? वो भी तब जब बिहार में विधानसभा का चुनाव हो। तो क्या यह मान लिया जाए कि राहुल गांधी राजनीतिक प्रयोग के उद्देश्य से बार-बार पटना आ रहे हैं। इसका कयास इसलिए भी लगाया जा सकता है क्यूंकि अन्य कुछ राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा के चुनावों में राहुल की यही रणनीति रही है, चाहे वह हरियाणा का विधानसभा चुनाव हो या फिर अभी-अभी संपन्न हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव का। इंडिया ब्लॉक का हिस्सा होते हुए भी अन्य क्षेत्रीय पार्टियों का साथ छोड़ कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया और क्षेत्रीय पार्टियों के इतर अपनी नई जमीन तलाशने की कोशिश करते दिखी।
अगर बात बिहार की करें तो इंडिया ब्लॉक के प्रमुख घटक और बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने तो बिखराव का इशारा यह कह कर पहले हीं दे चुके हैं कि इंडिया ब्लॉक का निर्माण लोकसभा के चुनाव के लिए हुआ था। इस बयान को ज्यादा तबज्जो ना भी दे तो राहुल गांधी के इस वर्ष के पहले पटना दौरे पर तेजस्वी का उनको अपने घर जाकर भुंजा पार्टी करना,गौशाला घूमाना और कोई भी राजनीतिक बयानबाजी या साझा घोषणाओं से दूरी बनाना महज एक राजनीतिक संयोग तो नहीं हो सकता। और अब जब राहुल गांधी के तय कार्यक्रम पर दूसरी बार पटना आने पर तेजस्वी के अचानक दिल्ली रवाना हो जाना और लालू यादव का अपने पार्टी के कार्यक्रम में नालंदा के लिए रवाना हो जाना भी एक इत्तेफाक है,ऐसा प्रतीत होता नहीं दिख रहा है। तो यह मान लिया जाए कि दोनों पार्टियां अपने-अपने राजनैतिक हक को साधने के लिए और एक-दूसरे पर दबाव बनाने के लिए एक सोची-समझी रणनीति के तहत ऐसा कर रही हैं।
बात अगर पिछले विधानसभा चुनाव की करें तो राजद और कांग्रेस के बीच 243 सीटों में से 214 सीटों का आपस में बंटवारा हुआ था। जिसमें राजद के खाते में 144 सीटें गई थी। वहीं कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसमें राजद ने 75 सीटों पर तो कांग्रेस महज 19 सीटों पर जीत दर्ज कर पायी थी। राजद को कुल 97,36,242 मत प्राप्त हुए और वोटिंग प्रतिशत 23.11 रहा वहीं दूसरी ओर कांग्रस को 39,95,003 मत प्राप्त हुए और उनका वोटिंग प्रतिशत 9.48 रहा और महागठबंधन महज कुछ सीटों के कारण बहुमत का आंकड़ा पार नहीं पायी थी। इस तरह माना जाता है की कांग्रेस का स्ट्राइक रेट और अच्छा होता तो महागठबंधन को चुनाव में बहुमत मिल सकता था। कहा जा सकता है की हार का ठीकरा जितना एनडीए पर नहीं फोड़ा जा सकता था। उससे अधिक कांग्रेस को जिम्मेवार माना गया।
अब इसके कयास जरुर लगाए जा सकते है कि इस बार राजद कांग्रेस को इतनी सीटें देने के पक्ष में नही दिख रही है। क्योंकि लालू यादव जैसे अनुभवी और प्रखर राजनीतिज्ञों से इतनी तो उम्मीद की ही जा सकती है कि सत्ता के शह और मात के इस खेल में सही समय पर अपने मोहरों का सही इस्तेमाल करें, चाहे इसके जो भी परिणाम निकले। वहीं राहुल गांधी भी इस बात को समझते हुए अपने उसी निर्णय को बिहार में भी लागू करना चाहते हैं जिसमें वह क्षेत्रीय पार्टियों की कठपुतली न बनकर दलित वोट बैंकों के जरिए अपनी अलग जमींन तलाशने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस की प्रदेश इकाई भी कह चुकी है की राहुल गाँधी चाह ले तो बिहार में कांग्रेस की स्थिति फिर पहले जैसी हो सकती है। खैर इस राजनीति में कौन किस पर दबाव बना रहा है इसका आकलन इतनी जल्दी कर पाना संभव नहीं है। ये तमाम विचार बस कयास भर है।
अभिषेक सुमन की रिपोर्ट