'अपराधियों को पार्टी में शामिल करने, चुनाव में टिकट देने के दौरान कहाँ चली जाती है नैतिकता', चिराग पासवान और तेजस्वी पर संतोष सुमन का जोरदार तंज

बिहार में अपराध के मामलों को लेकर जहां चिराग पासवान नीतीश सरकार पर तंज कस रहे हैं, वहीं अब जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन ने लोजपा प्रमुख को आड़े हाथों लिया है. साथ ही तेजस्वी यादव को भी जमकर सुनाया है.

Santosh Suman
Santosh Suman - फोटो : news4nation

Bihar News: बिहार में अपराध की घटनाओं को लेकर केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान द्वारा हाल में दिए बयान पर हम (से.) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व लघु जल संसाधन मंत्री डॉ. संतोष सुमन ने रविवार को बिना उनका नाम लिए कटाक्ष किया. साथ ही उन्होंने नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव द्वार बार बार अपराध पर उठाये जा रहे सवालों को लेकर उन पर भी बिना नाम लिए तंज किया. उन्होंने कहा कि कहा कि आजकल अपराध पर बयान देकर मीडिया की सुर्खियां बटोरने का फैशन हो गया है। अपराधियों को ताम झाम व गाजे बाजे के साथ पार्टी में शामिल कराने तथा अपराधियों के लिए मंच से 'जिंदाबाद' और 'अमर रहे' के नारे लगवाने के दौरान नैतिकता कहां चली जाती है? 

दरअसल, कुछ समय पूर्व सिवान के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन को लेकर तेजस्वी यादव ने 'अमर रहे' का नारा लगाया था. वहीं चिराग पासवान भी उसी सिवान के खान ब्रदर्स को अपनी पार्टी में ताम-झाम से शामिल कराए थे. ऐसे में अब दोनों को निशाने पर लेते हुए संतोष सुमन ने उन्हें घेरा है. उन्होंने कहा, बिहार कब का संगठित व सत्ता संरक्षित अपराध की दुनियाँ से बाहर निकल गया है। संगठित अपराध के मामले में बिहार देश में 19वें स्थान पर है। महिलाओं व बच्चों के खिलाफ अपराध में राष्ट्रीय औसत से बिहार आधे पर है।  अपराधियों को छुड़ाने व बचाने के लिए थानों में फोन करने की बातें गुजरे दिनों की हो गई हैं। हर आपराधिक घटना के खिलाफ त्वरित व कारगर कार्रवाई करने की पुलिस को खुली छूट मिली हुई है। 


जनता को बेवकूफ समझने की न करें भूल

उन्होंने नसीहत देते हुए कहा है कि राजनैतिक दलों के नेताओं को बयानवीर बनने से पहले इन आंकड़ों व पुलिस की कार्रवाई को देखना चाहिए। अनर्गल बयानबाज़ी से राजनीति की विश्वसनीयता संकट में पड़ रही है। राजनीति की मूल पूंजी भरोसा है, वह अगर एक बार ख़त्म हो गई तो फिर कभी ऐसे दलों व नेताओं पर जनता विश्वास नहीं करेगी। गलत बातों व तथ्यों से जनता को एक बार भ्रमित किया जा सकता है, बार-बार नहीं, क्योंकि उसकी पारखी नजर सबकी खबर रखती है। जनता को बेवकूफ समझने की भूल ऐसे नेताओं को भारी पड़ेगी।


कथनी और करनी के फर्क

संतोष सुमन ने कहा कि कथनी और करनी के फर्क की वजह से भी राजनीति व राजनेताओं की विश्वसनीयता घटती जा रही है। क्या राजनैतिक दलों में यह हिम्मत है कि वह अपराध की चर्चा करने व सरकार को कोसने से पहले अपने दलों के अराजक व आपराधिक तत्वों को चिन्हित कर उन्हें अपने दल से निकाल बाहर करें? अपराधियों को पनाह देकर, अपराधियों से घिरे रह कर क्या थोथे बयान देकर मीडिया का कवरेज पा लेने मात्र से अपराध पर नियंत्रण सम्भव है? क्या अपराध पर प्रवचन देने वाले अपराधी चरित्र के लोगों को टिकट देने से परहेज करेंगे? अगर नहीं, तो फिर किस मुँह से बोलेंगे व जनता के बीच जाएँगे?